नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में प्राकृतिक संसाधनों का खजाना दबा हुआ है, लेकिन ममता बनर्जी सरकार इस खजाने को बाहर निकालने की अनुमति नहीं दे रही है। ऐसा कहना है केंद्र सरकार का। देश की प्रमुख तेल और गैस खोज कंपनी ओएनजीसी (ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन) ने 6 साल पहले पश्चिम बंगाल के अशोकनगर में पहला तेल क्षेत्र खोजा था। इसके बाद उन्होंने 4 और संभावित तेल भंडारों का पता लगाया, लेकिन इन्हें विकसित करने के लिए जरूरी पेट्रोलियम खनन पट्टे (पेट्रोलियम माइनिंग लीज) की मंजूरी अब तक राज्य सरकार ने नहीं दी है।
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री ने लोकसभा में बताया कि अशोकनगर ऑयल फील्ड के लिए 10 सितंबर 2020 से पेट्रोलियम माइनिंग लीज लंबित है। चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य सरकार ने अब तक इस मंजूरी को रोके रखने का कारण तक नहीं बताया।
अशोकनगर तेल क्षेत्र का महत्व क्या है?
पश्चिम बंगाल के अशोकनगर में स्थित यह तेल भंडार चालू हो जाए तो राज्य को हर साल लगभग ₹8,126 करोड़ का राजस्व मिल सकता है। केंद्र सरकार ने इस परियोजना के लिए पहले ही ₹1,045.5 करोड़ का निवेश किया है, जो राज्य के विकास में बड़ी भूमिका निभा सकता था।
केंद्र सरकार के प्रयास जारी
अशोकनगर के अलावा, राज्य में 5 और संभावित तेल भंडार चिह्नित किए गए हैं। केंद्र सरकार, राज्य सरकार की उदासीनता के बावजूद, इस क्षेत्र में विकास को आगे बढ़ाने की कोशिशों में जुटी है।
केंद्र ने भेजे 19 पत्र, राज्य सरकार का कोई जवाब नहीं
2020 से अब तक पश्चिम बंगाल सरकार को 19 आधिकारिक पत्र भेजे जा चुके हैं। इनमें से 14 पत्र ओएनजीसी, 3 पत्र पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, और 2 पत्र हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय ने भेजे हैं। इसके बावजूद राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
राज्य सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार शायद राजनीतिक कारणों से इस प्रोजेक्ट को रोके हुए है। अशोकनगर का यह तेल क्षेत्र न केवल राज्य के आर्थिक हालात सुधार सकता है, बल्कि यहां रोजगार के नए अवसर भी पैदा हो सकते हैं।