पश्चमी बंगाल में कई हिंदी भाषा भाषी के लोग रहते है से बंगाल के लोगो के साथ बंगाल के हर उत्सव और यहा की सांस्कृति से घुल मिल गए है लेकिन कई राजनीतिक और गैर राजनीतिक लोगो संस्थाओ ने हिंदी भाषियों की सरकार द्वारा अवहेलना का आरोप भी लगाया है।
इस विषय पर आसनसोल के पूर्व मेयर तथा बीजेपी नेता जितेंद्र तिवारी ने हिंदी भाषियों को अपेक्षित करने का आरोप लगाया है उन्होंने कहा कि 2011 में पश्चिम बंगाल की जब तृणमूल की नई सरकार बनी थी तृणमूल की तब 6 भाषाओं को भाषाई अल्पसंख्यक की मान्यता दी गई थी तब लोगों को उम्मीद थी कि इन भाषाओं को पढ़ने वाले इन भाषाओं को चर्चा करने वाले लोगों को लाभ मिलेगा शायद सरकार कुछ करेगी इतने बरस बीत गए भाषाई अल्पसंख्यक लोगों के प्रति तृणमूल सरकार उदासीन नज़र आई है।
सरकारी नौकरियों मे बैठने नहीं दे रहे हैं और सरकारी नौकरी से वंचित हो रहे हैं हिंदी भाषी यह हम लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं यह बंगाल तृणमूल कांग्रेस का बंगाल नहीं है, यह रवींद्रनाथ टैगोर का स्वामी विवेकानंद का है बंकिम चंद्र, नज़रुल,जैसे ऋषि मुनिषयो का बंगाल है भाषा के आधार पर बंगाल को विभाजन नहीं किया जा सकता है बार-बार विनम्र निवेदन करने के बाद भी यहां की सरकार इस पर कार्य नही कर रही पूरे बंगाल के भाषाई अल्पसंख्यक जो लोग सब एक जगह इकट्ठा होकर आंदोलन करना होगा बंगाल में 65 ऐसे असेंबली जहां पर अल्पसंख्यक भाषा के लोग हैं आने वाली 15 दिसंबर को कोलकाता के धर्मतल्ला में बड़ी जमात की योजना की जा रही है पुलिस प्रशासन को इस विषय में जानकारी लिखित दे दी गई है 15 दिसंबर को एक मंच पर समस्याओं को रखकर कानूनी पहलुओं को भी बातचीत चल रही है यहां की सरकार जो हमें बांग्ला पढ़ने से वंचित कर रही है उसे पर भी कानूनी सलाह लेकर इस पर भी कोर्ट का दरवाजा कैसे कर कटाया जाए योजना बनाई जाएगी बंगाल में रहने वाला हर व्यक्ति बंगाली है इनको बाहरी कहना नहीं चलेगा और हिंदी भाषाओं को बांग्ला पढ़ने का भी अवसर देना होगा मातृभाषा दूसरी हो सकती है लेकिन बंगाल में जो रह गए वह बांग्ला पढ़ना चाहते हैं बांग्ला सीखना चाहते हैं यहां की सरकार को स्कूलों में अल्पसंख्यक भाषाओं के जाने वाले लोगों को बांग्ला पढ़ने से रोक रही है।