🗓️ आसनसोल |
सेल बर्नपुर के ट्रेनिंग सेंटर में तृणमूल पार्षद अशोक रुद्र द्वारा हिंदी भाषी कर्मचारियों को धमकाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। केवल हिंदी भाषी समाज ही नहीं, अब खुद तृणमूल कांग्रेस की श्रमिक इकाई आईएनटीटीयूसी (INNTUC) भी उनके बयान के खिलाफ खुलकर मैदान में उतर आई है। इससे ना सिर्फ पार्टी में मतभेद उजागर हुए हैं, बल्कि इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द्र को भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
🔥 क्या है पूरा मामला?
सूत्रों के मुताबिक, तृणमूल पार्षद अशोक रुद्र पर आरोप है कि उन्होंने सेल बर्नपुर के ट्रेनिंग सेंटर में जाकर हिंदी भाषी कर्मचारियों को “बाहरी” कहते हुए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया और धमकाया। इस घटना का एक ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, जिससे जनाक्रोश और भी भड़क गया।
🧱 समाज को बांटने की कोशिश?
हिंदी भाषी समाज के प्रमुख नेता मदन चौबे और ओमनारायण ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर अशोक रुद्र के खिलाफ तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “ये बयान समाज को बांटने और वोट बैंक की राजनीति चमकाने का शर्मनाक प्रयास है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
⚙️ तृणमूल के श्रमिक संगठन का विरोध
सबसे बड़ा झटका अशोक रुद्र को तब लगा जब उनके ही दल की श्रमिक इकाई INTTUC के वरिष्ठ नेता राजू अहलूवालिया ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा:
“श्रमिकों की बात करने का अधिकार श्रम मंत्री मलय घटक और INTTUC जिला अध्यक्ष अभिजीत घटक को है। एक पार्षद का काम विकास करना है, धमकी देना नहीं।”
🤝 “बर्नपुर की मिट्टी में भाईचारा है”
राजू अहलूवालिया ने कहा कि बर्नपुर और उसके आस-पास के इलाकों में सभी भाषा, धर्म और जाति के लोग मिल-जुलकर रहते आए हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि “श्रमिकों को बांटने की कोशिश किसी कीमत पर सफल नहीं होगी।”
💥 पार्टी में दो फाड़?
इस बयान के बाद तृणमूल कांग्रेस के अंदर की खामोश खींचतान अब सार्वजनिक मंच पर आ गई है। एक तरफ अशोक रुद्र जैसे नेता हैं जो बयानबाज़ी से समाज को बांट रहे हैं, वहीं पार्टी के ही दूसरे नेता अब इसका खुलकर विरोध करने लगे हैं।
📢 जनता की मांग: कार्रवाई करो!
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि इस तरह की बयानबाजी से इलाके में शांति भंग हो सकती है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि:
- इस मामले की निष्पक्ष जांच हो,
- अशोक रुद्र को तत्काल पार्टी से निलंबित किया जाए,
- और समाज में एकता बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
🔍 सवाल जो खड़े हो रहे हैं…
- क्या तृणमूल कांग्रेस अपने ही पार्षद पर कोई कार्रवाई करेगी?
- क्या यह सिर्फ एक और “बयानबाज़ी विवाद” बनकर रह जाएगा?
- क्या भाषा और क्षेत्र के नाम पर राजनीति करने वालों पर नकेल कसी जाएगी?
अब सबकी निगाहें तृणमूल नेतृत्व और प्रशासन पर हैं…