👉 केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को मैनेज करने की जिम्मेदारी, टॉप अफसर ने सुझाया था नाम
👉 ईडी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी पूरी रिपोर्ट, गृह मंत्री को भी कराया गया अवगत
कोलकाता/आसनसोल (प्रेम शंकर चौबे) : कोयला कारोबारियों (बड़ी मछलियों) के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा बीते हफ्ते लगातार दो दिनों तक की गई ताबड़तोड़ छापेमारी के बाद अब रोजाना नये-नये खुलासे हो रहे हैं। ईडी की टीम अब कोल सिंडिकेट के दो सबसे अहम चेहरों कृष्ण मुरारी कयाल उर्फ बिल्लू उर्फ केके और लाल बहादुर सिंह उर्फ एलबी के साथ ‘अफसरों’ के नेक्सस को डिकोड करने में जुटी हुई है। इसी कड़ी में ईडी की टीम को सबसे ज्यादा हैरान एक नाम ने किया है। वह नाम है रमेश गोप का। सिंडिकेट में इसकी एंट्री पूरी तरह से फिल्मी व नई है। इसका जिम्मा एक केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को मैनेज करने का है। इसे सिंडिकेट में ‘मैनेज मास्टर’ नाम से बुलाया जाता है। जांच में सबसे अहम बात सामने आई है कि केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी के एक टॉप लेबल अफसर द्वारा इसका नाम सिंडिकेट को सुझाया गया था, जिसके बाद मास्टरमाइंड ने इसे सिंडिकेट का मेंबर बनाया और जिम्मेवारी सौंप दी। अब ईडी इसकी जड़ें तलाश रही है, ताकि सुरक्षा दायित्व संभाल रहे एजेंसी के लिकेज प्वाइंट को बंद किया जा सके और नकेल कसी जा सके। मामला सामने आने के बाद सुरक्षा एजेंसी में विभागीय स्तर पर खलबली मची हुई है।
वर्षों से चल रहा मैनेज करने का खेल
सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहती है। बावजूद इसके सुरक्षा एजेंसी की कार्यप्रणाली हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है। जिस एजेंसी पर पूरी सुरक्षा व कार्रवाई का दायित्व होता है, उसकी संलिप्तता कई बार सामने आ चुकी है। कई दशकों से चल रहे कोयले के अवैध-धंधे में एजेंसी को मैनेज करने की भूमिका कई अलग-अलग सिंडिकेट मेंबर द्वारा निभाई गई है। पहले इसकी जिम्मेवारी बर्नपुर के भम्बोल को दी गई थी। उसने वर्षों तक अपने इस दायित्व का बखूबी निर्वहन किया। फिर हाल के सिंडिकेट में इस जिम्मेवारी को बॉर्डर इलाके के मिश्रा-शर्मा को सौंपा गया। वह भी अपनी जिम्मेवारी तल्लीनता से निभा रहा था। काम सुनियोजित तरीके से चल रहा था।
नौसिखिए की फिल्मी एंट्री ने सबका खींचा ध्यान
इसी बीच चालू वर्ष के नवंबर माह में अचानक से मिश्रा से दायित्व छीन लिया गया। अचानक भूमिका खत्म किए जाने से उसके पांव तले जमीन खिसक गई। खूब हो-हल्ला मचा। फिर एंट्री हुई रमेश गोप का, पूरे फिल्मी अंदाज में। अचानक से एक नौसिखिए को इतनी बड़ी जिम्मेवारी मिलने से हर कोई हतप्रभ था। मिश्रा भी उसके रूतबे को जानकर चुप्पी साध गया। रमेश ने भी खूब भौकाल मचाया और अपनी साख को बढ़ा-चढ़ा कर दर्ज कराया। औपचारिक रूप से उसने 15 नवंबर को ही सिंडिकेट की जिम्मेवारी संभाली और 5 दिनों में ही ईडी की ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई तो जांच एजेंसी भी रमेश के गिरेबान तक पहुंच गई।
होटल व्यवसाय की आड़ में सिंडिकेट का ऑपरेशन
ईडी को जांच के क्रम में पता चला है कि रमेश का काम केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को मैनेज करना था, ताकि सिंडिकेट के ऑपरेशन में कहीं कोई परेशानी न हो। आगे की जांच में खुलासा हुआ कि केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी के एक टॉप लेबल अफसर ने ही रमेश का नाम सुझाया था, जिसके बाद सिंडिकेट में उसकी एंट्री हुई। केके ने रमेश को दायित्व सौंप दिया। मूल रूप से झारखंड के निरसा का निवासी रमेश होटल व्यवसाय से जुड़ा बताया जाता है। निरसा इलाके में हाईवे के किनारे उसका एक होटल भी है, जहां सिंडिकेट के ऑपरेटरों-गुर्गों का जमावड़ा भी लगा रहता है। ईडी की छापेमारी के दौरान रमेश के ठिकाने से 19 लाख रुपए और कई अहम दस्तावेज भी बरामद हुए थे।
जांच टीम की कार्रवाई से सुरक्षा एजेंसी में मची खलबली
रमेश को लेकर हुए खुलासे ने ईडी अधिकारियों को हैरान कर दिया है। उसकी एंट्री की दिलचस्प कहानी ने जांच एजेंसी के कान खड़े कर दिए हैं। इस खुलासे के बाद जांच एजेंसी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस संबंध में अपनी पूरी रिपोर्ट सौंपी है। इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री को भी पूरे मामले से अवगत कराया गया है। सुरक्षा एजेंसी में छिपे स्पाई को दबोचने को जाल बिछाया गया है। बताया जाता है कि रमेश दिल्ली में पदस्थ एजेंसी के अनिल बाबू के काफी करीबी संपर्क में था, जहां से ही यह डील का खेल किया गया। अब ईडी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की मदद से सुरक्षा एजेंसी के उन कड़ियों की तलाश शुरू कर दी है, जो सिंडिकेट की मददगार व सिपहसालार बनी हुई थी। यह खुलासा होने के बाद सुरक्षा एजेंसी से जुड़े उन अफसरों में भी हड़कंप और दहशत है, जो सिंडिकेट को संरक्षण प्रदान कर रहे थे। उन्हें डर सता रहा है कि कभी भी ईडी के हाथ उनके गिरेबान तक पहुंच सकती है। बता दें कि सर्च ऑपरेशन के बाद ईडी ने अपनी रिपोर्ट में यह उल्लेख किया है कि लोकल अथॉरिटी के सहयोग से पूरा नेटवर्क ऑपरेट किया जा रहा था। ईडी अब इसी नेक्सस को डिकोड करना चाहती है। इसकी शुरुआत केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी से ही की जा रही है, ताकि लोकल अथॉरिटी के तह तक पहुंचने में आसानी हो सके।
सिंडिकेट से जुड़े लोगों को ई-मेल भेजकर जवाब तलब, आगे होगी पूछताछ
इधर, ईडी से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि इस पूरे सिंडिकेट व इसके मेंबरों के साथ किसी भी रूप में जुड़े (चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष) लोगों की भूमिका अब खंगाली जा रही है। बरामद डायरियों व रजिस्टर में दर्जनों ऐसे नाम मिले हैं, जिसके साथ सिंडिकेट का कुछ न कुछ लेन-देन हुआ था। मेंबरों के साथ व्यापारिक रिश्ते पाए गए हैं। ऐसे लोगों की सूची बनाकर सभी को ई-मेल भेजा गया है। उनकी भूमिका के संबंध में जानकारी मांगी गई है। लेन-देन का खुलासा करने को कहा गया है। ई-मेल से जवाब मिलने के बाद उन सभी को सीजीओ कॉम्प्लेक्स (कोलकाता) स्थित ईडी दफ्तर बुलाया जाएगा, जहां उनसे विस्तार से पूछताछ की जाएगी। जरूरत पड़ने पर सिंडिकेट मेंबर्स के साथ आमने-सामने बैठाकर भी सच उगलवाया जाएगा।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि ईडी ने प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के सेक्शन 17 के तहत पश्चिम बंगाल और झारखंड में 44 जगहों पर कोऑर्डिनेटेड बड़ी सर्च कार्रवाई की। यह कार्रवाई बड़े पैमाने पर कोयले की गैर-कानूनी माइनिंग, चोरी, ट्रांसपोर्टेशन, स्टोरेज और बिक्री के संबंध में की गई। सर्च कार्रवाई के दौरान, 14 करोड़ रुपये से ज़्यादा का कैश और ज्वेलरी/सोना, साथ ही बड़ी मात्रा में सबूत मिले, जिसमें कोयला सिंडिकेट से जुड़ी कई प्रॉपर्टी डीड और ज़मीन की खरीद-बिक्री से जुड़े एग्रीमेंट, और कई डिजिटल डिवाइस, उन लोगों द्वारा कंट्रोल की जाने वाली एंटिटीज़ के अकाउंट बुक वगैरह शामिल हैं। झारखंड में 20 जगहें धनबाद और दुमका में हैं, जो मुख्य रूप से लाल बहादुर सिंह, अनिल गोयल, संजय खेमका, अमर मंडल, उनकी कंपनियों/एंटिटीज़ और उनसे जुड़े लोगों से जुड़ी हैं। पश्चिम बंगाल में 24 जगहें दुर्गापुर, पुरुलिया, हावड़ा और कोलकाता में हैं। पश्चिम बंगाल में नरेंद्र खरका, कृष्ण मुरारी कयाल, युधिष्ठिर घोष, राज किशोर यादव, लोकेश सिंह, चिन्मय मंडल, नीरद बरन मंडल और दूसरों से जुड़े कई घरों, ऑफिसों, गैर-कानूनी टोल कलेक्शन बूथ और कोक प्लांट में तलाशी ली गई। CRPF जवानों के साथ ED के 100 से ज़्यादा अधिकारी तलाशी में शामिल थे।
ED की जांच पश्चिम बंगाल और झारखंड पुलिस द्वारा दर्ज की गई कई FIR पर आधारित है, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और झारखंड के बीच चल रही गैर-कानूनी कोयला तस्करी के मामले में हैं। FIR से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल-झारखंड बॉर्डर पर एक बड़ा नेटवर्क चल रहा है, जिसमें झारखंड से पश्चिम बंगाल राज्य में बिना किसी वैलिड डॉक्यूमेंट के कोयले की गैर-कानूनी सप्लाई शामिल है। तलाशी के दौरान जब्त किए गए डॉक्यूमेंट और दूसरे रिकॉर्ड ने FIR में लगाए गए आरोपों की पुष्टि की है और इससे स्थानीय अधिकारियों (लोकल अथॉरिटी) की मदद से चल रहे एक ऑर्गनाइज्ड रैकेट की पहचान भी हुई है।
इससे पता चला है कि यह सिंडिकेट पश्चिम बंगाल और झारखंड के बॉर्डर इलाकों में बहुत एक्टिव है और इसने क्राइम से बहुत ज़्यादा कमाई की है। इसके अलावा, कई डायरियाँ और रजिस्टर भी मिले हैं जिनमें गैर-कानूनी कैश कलेक्शन और उनके बेनिफिशियरी का ब्यौरा है। पश्चिम बंगाल में 3 कोक प्लांट में की गई तलाशी के दौरान, गैर-कानूनी तरीके से रखे गए लगभग 7.9 लाख MT कोयला और कोयला एग्रीगेट की पहचान की गई। ईडी का कहना है कि आगे की जांच जारी है।












