क्या है सिंडिकेट, कौन हैं इसके बॉस-मेंबर्स?… बस एक CLICK में जानें सब कुछ

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👉 शिल्पांचल में सिंडिकेट राज (PART-2)

आसनसोल (प्रेम शंकर चौबे) : ऐतिहासिक विरासत व गाथा समेटे आसनसोल-दुर्गापुर शिल्पांचल को बीते 3-4 दशक में तस्करी की विधाओं ने गर्त में पहुंचाने का काम किया है। शिल्पांचल की प्राकृतिक संसाधनों का दोहन न केवल तस्करों-माफियाओं ने किया है। बल्कि, रसूखदारों-सफेदपोशों ने इसकी लालिमा को कालिमा में बदल डाला है। हाल के समय में तस्करों के चेहरों के साथ-साथ तस्करी की प्रणाली में भी आधुनिक आमूलचूल बदलाव आया है। एक ओर जहां नियमित अंतराल पर तस्करों-माफियाओं का मुखौटा बदल दिया जा रहा है, तो दूसरी ओर, तस्करी के नये-नये तरीकों से शिल्पांचल को लूटा जा रहा है।

इस स्पेशल सीरीज के दूसरे भाग में आप आज पढ़ रहे हैं कि- क्या है सिंडिकेट, कौन हैं इसके बॉस-मेंबर्स?… पहले तो यह बता दें कि सिंडिकेट शब्द से ही पता चल जाता है कोई गिरोह है। ऐसा गिरोह जो चोरी-छिपे अपराधों को अंजाम देता है। लेकिन, शिल्पांचल के सिंडिकेट की खासियत यह है कि इसमें लुका-छिपी का कोई खेल नहीं है, बल्कि इसमें सब कुछ ओपन टू ऑल पर आधारित है। सिंडिकेट को लेकर एक वर्ग की धारणा है कि इसके संबंध में किसी को कोई जानकारी नहीं होती है। वहीं, दूसरा वर्ग यह दावा करता है कि पता तो सबको सब कुछ का रहता है, लेकिन कहता कोई कुछ नहीं।

शिल्पांचल में कोयला और बालू तस्करी को सुव्यवस्थित रूप से बेरोक-टोक और धड़ल्ले से संचालित करने के लिए एक गिरोह यानी कि सिंडिकेट तैयार किया गया है। इसमें पैड के साथ-साथ तस्कर से लेकर रंगदार तक शामिल हैं। प्रत्येक थाना क्षेत्र के लिए अलग-अलग चेहरों को जिम्मा दिया गया है। हालांकि, जिस संगठित रूप से सिंडिकेट द्वारा शिल्पांचल में कोयला-बालू तस्करी को अंजाम दिया जा रहा है। उससे पुलिस-प्रशासन और सत्तारूढ़ दल के एक वर्ग पर सवाल उठना भी लाजमी है। क्योंकि, कार्रवाई तो दूर की बात है, इस पर अंकुश लगाने के लिए कभी ठोस पहल ही नहीं की जाती है।

कोयला तस्करी मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी द्वारा शिल्पांचल सहित पूरे बंगाल में की गई ताबड़तोड़ कार्रवाई के साथ किंगपीन अनूप माजी उर्फ लाला की गिरफ्तारी और मास्टरमाइंड विनय मिश्रा के देश से फरार होने के बाद कुछ समय के लिए सिंडिकेट पर ब्रेक-सा लग गया था। इसके बाद वर्ष 2023 के अक्टूबर माह में शिल्पांचल में फिर एक नया सिंडिकेट उभरा, जिसने वर्ष 2024 के नवंबर माह तक संगठित रूप से तस्करी को अंजाम दिया। इसी दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा कड़े तेवर दिखाए जाने के बाद कई आला पुलिस अफसर बदल दिए गए। सीआईडी चीफ को हटा दिया गया। इस कार्रवाई के बाद वह सिंडिकेट भी निष्क्रिय हो गया। करीब तीन-चार माह मामला शांत रहने के बाद फिर चोरी-छिपे तस्करी शुरू कर दी गई। अंततः 2025 के सितंबर माह में तस्करों ने मिलकर एक अहम बैठक की। इसमें एक सिंडिकेट का गठन किया गया। कई पुराने चेहरों को बाहर कर दिया गया। कुछ पुराने चेहरों के साथ नये लोगों को मौका दिया गया। एक फ्रेश चेहरे के साथ तस्करी फिर जोर-शोर से शुरू कर दी गई।

सिंडिकेट की खास बात यह होती है कि इसके सदस्यों के नाम का खुलासा तो आसानी से हो जाता है, लेकिन चीफ (हेड) का नाम खुलकर कभी सामने नहीं आता। आरोप है कि खाकी-खादी के संरक्षण में फलते-फूलते इस सिंडिकेट में हर बार सामने एक नया चेहरा लाया जाता है, जिसको सामने रखकर पूरा गोरखधंधा संचालित किया जाता है। मसलन लाला के समय-काल में जिस सिंडिकेट ने तस्करी को ऑपरेट किया। जनता की नजर में उस सिंडिकेट में लाला की भूमिका बॉस की थी और सदस्यों में जयदेव, नारायण, श्याम, निरोध, गुरुपद आदि अन्य शामिल थे। लेकिन, सीबीआई ने खुलासा किया कि सिंडिकेट का मास्टरमाइंड विनय मिश्रा था, वो भी किसी ‘प्रभावशाली’ के इशारे पर इसे ऑपरेट किया करता था। हालांकि, सीबीआई का दावा है कि जल्द ही उस ‘प्रभावशाली’ के नाम का भी खुलासा हो जाएगा।

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अब आते हैं फिलहाल शिल्पांचल में ऑपरेट हो रहे सिंडिकेट की। इस सिंडिकेट में सबसे अहम दो नाम लोकेश और पप्पू के हैं, जो इससे पहले के सिंडिकेट में भी मुख्य भूमिका में थे और इस बार भी इन दोनों की भूमिका यथावत है। लेकिन, सबसे ज्यादा ध्यान किसी नए चेहरे ने खींचा है तो वह नाम है शशि का। कम उम्र का यह शशि कभी कोयले के डीओ कारोबार से जुड़ा था। उस काम में इसने महारथ हासिल की तो पर्दे के पीछे से सिंडिकेट ऑपरेट करने वालों की नजर शशि पर पड़ी। कुल्टी-बराकर-झनकपुरा से संबंध रखने वाला शशि जल्द ही सिंडिकेट की अपेक्षाओं पर खरा भी उतर गया। ऑपरेटरों की फ्रेश चेहरे की तलाश खत्म हो गई। शशि को सामने कर दिया गया। हालांकि, सिंडिकेट से जुड़े सदस्यों का दावा है कि शिल्पांचल के सिंडिकेट राज में सबसे अहम भूमिका लोकेश की है और पप्पू उसका खासम-खास है। लेकिन, लोकेश को भी ऑर्डर कहीं और से मिलते हैं। वह खुद सारे निर्णय लेने का हकदार नहीं है।

शिल्पांचल से तस्करी किए हुए कोयला-बालू लदे वाहन पूर्ण सुरक्षा एवं संरक्षण में हाईवे के रास्ते डानकुनी और डनलप पहुंचते हैं, यहां इन सारे कोयला-बालू का असल दस्तावेज तैयार किया जाता है। फिर इन सामानों को पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावे ओडिशा के साथ ही बांग्लादेश में खपाया जाता है। कोलकाता (डानकुनी-डनलप) में सिंडिकेट को ऑपरेट करने का जिम्मा के.के. को मिला हुआ है। हालांकि, उसे भी ऑर्डर ऊपर से ही आते हैं। सिंडिकेट ने सिस्टम को इस तरह जकड़ रखा है या फिर ये कहें कि सिस्टम ही सिंडिकेट का हिस्सा हो गया है कि इस पूरे गोरखधंधे में कहीं भी चूं-चां नहीं होती। व्यवस्थित और सुगमता के साथ इस क्राइम को बिजनेस बना दिया जाता है।

शिल्पांचल में सिंडिकेट से किसे-कहां जिम्मा?

🔹दुर्गापुर/अंडाल/पांडेश्वर – लोकेश

🔹कुल्टी/बराकर – शशि

🔹बाराबनी/सालानपुर- संजय

🔹जामुड़िया – सोदू, आलोक, गोष्ठो

🔹रानीगंज – पप्पू, कृष्णा, लटुआ, कयाल

🔹आसनसोल – बिबेक, झंटू, अभिनाष

🔹कोलकाता (डानकुनी-डनलप) – केके

शिल्पांचल के सिंडिकेट में अधिकांशतः नये सदस्य ही है। ये सभी बीते 7-8 वर्षों से एक्टिव हैं। इससे पहले के सिंडिकेट में लोकेश, पप्पू, कृष्णा और कयाल के होने के कारण इनकी भूमिका सबसे अहम मानी जाती है। गोष्ठो, लटुआ, सोदू पर दारोमदार ज्यादा है, क्योंकि ये तीनों लंबे समय से कोयला कारोबार से जुड़े हुए हैं। बिबेक और झंटू को बालू का दिग्गज खिलाड़ी माना जाता है। जबकि, शशि ने डीओ के काम में अपना हुनर सबको दिखाया है। हर थाना क्षेत्र में सिंडिकेट के सदस्यों के अधीन भी दर्जनों सदस्य और सैकड़ों हैंड्स शामिल रहते हैं, जो बैकअप के तैर पर आपात स्थिति का मुकाबला करते हैं। बड़े नाम वाले सदस्य सामने नहीं आते और छूटभैये सदस्य सामने आकर पूरा गेम खेलते हैं।

बहरहाल, सिंडिकेट द्वारा कोयला-बालू से लेकर स्टोन-डस्ट, पैड और रंगदारी का गोरखधंधा बदस्तूर ऑपरेट किया जा रहा है। इनके मुखिया को लेकर दबी जुबान से कई तरह की चर्चा है। आने वाले समय में इसका खुलासा भी हो सकता है।

🔹इस सीरीज के तीसरे भाग में आप पढ़ेंगे- कैसे जन्मा था सिंडिकेट, क्या है इसका काला इतिहास और काले कारनामे?… आगे जारी…

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