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“मज़दूरों के नाम राजनीति बंद करो” — NFITU का सख़्त संदेश

कोलकाता / आसनसोल:
राष्ट्रीय भारतीय ट्रेड यूनियन महासंघ (NFITU) ने 9 जुलाई 2025 को कुछ राजनीतिक रूप से संबद्ध यूनियनों द्वारा बुलाए गए भारत बंद/हड़ताल में भाग न लेने का निर्णय लिया है। संगठन ने कहा कि यह हड़ताल श्रमिकों के हित से अधिक राजनीतिक प्रचार और शक्ति प्रदर्शन के लिए है।

📢 “हड़ताल चाहिए, पर श्रमिकों के लिए, राजनीति के लिए नहीं” — NFITU

NFITU ने अपने आधिकारिक बयान में कहा:

“हम मज़दूरों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं, लेकिन देश और उसके श्रमिकों के प्रति जिम्मेदारी भी नहीं भूल सकते।
कृपया मज़दूरों को राजनीतिक मोहरा न बनाएं। वे पहले से ही मंदी, बेरोज़गारी और शोषण से जूझ रहे हैं।”

🚫 NFITU का सीधा हमला: ‘एजेंडा’ के नाम पर मत खेलो श्रमिकों से

NFITU नेताओं ने राजनीतिक यूनियनों को निशाना बनाते हुए कहा:

“यह हड़ताल सिर्फ़ राजनीतिक मंच बनाने और मीडिया में दिखने के लिए है।
ना कोई ठोस मांग है, ना समाधान का प्रस्ताव।
ऐसे नाटकीय विरोधों से मज़दूरों को कुछ नहीं मिलेगा, उल्टा वे और भ्रमित होंगे।”

🔍 “सच्ची हड़ताल वो है जो मज़दूर के वेतन, काम, और सम्मान के लिए हो”

NFITU ने आम जनता और श्रमिकों से अपील की:

  • ऐसे हड़तालों से दूरी बनाएं जिनका मकसद केवल सत्ता संघर्ष है।
  • श्रमिकों के मूल मुद्दे जैसे न्यूनतम वेतन, स्थायी रोजगार, कार्यस्थल की सुरक्षा पर ध्यान दें।

“सच्चा संघर्ष वही है जो राजनीतिक एजेंडा नहीं, बल्कि मेहनतकश का भविष्य बदले।”

📝 निष्कर्ष:

NFITU का यह रुख यह दर्शाता है कि अब ट्रेड यूनियनों के भीतर भी राजनीति और जनहित को लेकर स्पष्ट रेखाएं खिंच रही हैं
संगठन का यह साहसिक फैसला न केवल राजनीतिक हड़तालों पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि श्रमिक आंदोलन को नए नैतिक मापदंड भी देता है।

ghanty

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