[metaslider id="6053"]

NISAR Mission Launch : इसरो-नासा का सबसे महंगा और ताकतवर सैटेलाइट, स्पेस से करेगा धरती की निगरानी, भूकंप-सुनामी से पहले बजेगा खतरे का सायरन

श्रीहरिकोटा (प्रेम शंकर चौबे) : अब तक के सबसे महंगे और सबसे पावरफुल अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट निसार को आज यानी, बुधवार 30 जुलाई को लॉन्च किया गया। इस मिशन पर 1.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 12,500 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इसे NASA और ISRO ने मिलकर बनाया है।

इसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 5:40 बजे GSLV-F16 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया। रॉकेट ने निसार को 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर सूरज के साथ तालमेल वाली सन-सिंक्रोनस कक्षा में स्थापित किया। इसमें करीब 18 मिनट लगे।

निसार 747 Km की ऊंचाई पर पोलर ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा। पोलर ऑर्बिट एक ऐसी कक्षा है जिसमें सैटेलाइट धरती के ध्रुवों के ऊपर से गुजरता है।

सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट पोलर ऑर्बिट का ही एक खास रूप है। यह पहली बार है जब जीएसएलवी रॉकेट से उपग्रह को इस ऑर्बिट में स्थापित किया गया। इस मिशन की अवधि 5 साल है।

क्या है निसार?

निसार एक हाई-टेक सैटेलाइट है। इसका पूरा नाम NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार है। इसे अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA और भारतीय एजेंसी ISRO ने मिलकर बनाया है। इस मिशन पर 1.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 12,500 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।

ये सैटेलाइट 97 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेगा। 12 दिनों में 1,173 चक्कर लगाकर यह पृथ्वी की लगभग हर इंच जमीन को मैप कर लेगा।

इसके पास बादलों, घने जंगल, धुएं और यहां तक कि अंधेरे में भी देखने की क्षमता है। यह धरती की सतह पर बहुत छोटे बदलावों को भी देख सकता है।

Nisar

मिशन के मुख्य उद्देश्य?

निसार मिशन का मुख्य मकसद है धरती और उसके पर्यावरण को करीब से समझना। ये सैटेलाइट खास तौर पर तीन चीजों पर नजर रखेगा:

जमीन और बर्फ के बदलाव: ये देखेगा कि धरती की सतह या ग्लेशियर्स में कितना बदलाव हो रहा है। जैसे जमीन का धंसना या बर्फ का पिघलना।

जमीन के पारिस्थितिक तंत्र: जंगलों, खेतों और दूसरी प्राकृतिक जगहों की स्थिति को मॉनिटर करेगा, ताकि ये समझा जा सके कि पर्यावरण कैसा है।

समुद्री क्षेत्र: समुद्र की लहरों, उनके बदलावों और समुद्री पर्यावरण को ट्रैक करेगा।

इन जानकारियों से वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरण को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे। मिशन का ओपन-सोर्स डेटा सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध होगा।

पारंपरिक सैटेलाइट्स से अलग

पृथ्वी के तेजी से हो रहे बदलाव को पारंपरिक सैटेलाइट्स से बिल्कुल सटीक तरीके से ट्रैक नहीं किया जा सकता। निसार इस कमी को पूरा करता है। ये हर मौसम में हाई-क्वालिटी तस्वीरें लेता है। ये धरती की हर छोटी-बड़ी हरकत को लगभग रियल-टाइम में दिखाएगा।

कैसे काम करता है निसार?

निसार में एक 12 मीटर डायमीटर का गोल्ड प्लेटेड रडार एंटीना है, जो 9 मीटर लंबी बूम से जुड़ा है। ये एंटीना माइक्रोवेव सिग्नल्स को धरती पर भेजता है, जो वापस लौटकर जानकारी देती है। खास बात ये है कि इसे सूरज की रोशनी की जरूरत नहीं है।

ये पहला सैटेलाइट है जो दो तरह के रडार-NASA के L-बैंड और ISRO के S-बैंड का इस्तेमाल करेगा:

एल-बैंड: 24 सेंटीमीटर की वेवलेंथ। ये जंगलों या मोटी सतहों के अंदर देखने में बेहतर है।

एस-बैंड: 9 सेंटीमीटर की वेवलेंथ। ये तरंगें ज्यादा बारीक चीजों को पकड़ने में मदद करती हैं।

ये धरती के सेंटीमीटर स्तर के बदलाव को भी पकड़ सकता है। उदाहरण के लिए अगर धरती कहीं 10 cm नीचे दब रही है या 15 cm ऊपर उठ रही है, तो निसार इसे रंगों के जरिए दिखाएगा। जैसे:

हरा: धरती कुछ सेंटीमीटर ऊपर उठी

लाल: धरती 15 सेंटीमीटर ऊपर उठी

नीला: धरती कुछ सेंटीमीटर नीचे दबी

पर्पल: धरती 10 सेंटीमीटर नीचे दबी

nisar1

चार चरणों में पूरा होगा मिशन

इस मिशन को चार मुख्य चरणों में बांटा गया है:

1. लॉन्च चरण: सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजना

निसार को 30 जुलाई 2025 को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। इसके लिए ISRO का GSLV-F16 रॉकेट का इस्तेमाल हुआ।

2. डिप्लॉयमेंट चरण: सैटेलाइट को तैयार करना

निसार में एक 12 मीटर चौड़ा रडार एंटीना है, जो सैटेलाइट से 9 मीटर दूर एक खास बूम पर लगाया गया है। ये बूम NASA के जेट प्रोपल्शन लैब (JPL) ने डिजाइन किया है और ये कई स्टेप्स में अंतरिक्ष में खुलता है। सोचिए, जैसे कोई बड़ा छाता अंतरिक्ष में धीरे-धीरे खुलता है। इस चरण में सैटेलाइट का ये एंटीना पूरी तरह सेट हो जाएगा, ताकि वो काम शुरू कर सके।

3. कमीशनिंग चरण: सिस्टम की जांच

लॉन्च के बाद पहले 90 दिन कमीशनिंग या इन-ऑर्बिट चेकआउट (IOC) के लिए होंगे। इस दौरान सैटेलाइट के सारे सिस्टम्स को चेक किया जाएगा, ताकि ये सुनिश्चित हो कि सब कुछ ठीक काम कर रहा है। पहले सैटेलाइट के मुख्य हिस्सों की जांच होगी, फिर JPL के इंजीनियरिंग पेलोड और इंस्ट्रूमेंट्स टेस्ट होंगे।

4. साइंस ऑपरेशन चरण: असली काम की शुरुआत

कमीशनिंग के बाद साइंस ऑपरेशन चरण शुरू होगा, जो मिशन के अंत तक चलेगा। इस दौरान निसार धरती की निगरानी शुरू करेगा। सैटेलाइट को सही ऑर्बिट में रखने के लिए समय-समय पर छोटे-छोटे मैन्यूवर्स किए जाएंगे, ताकि वो डेटा इकट्ठा करने में कोई रुकावट न आए।

आसान शब्दों में, ये वो स्टेज है जब निसार असली काम शुरू करेगा। यानी धरती की तस्वीरें खींचना, बर्फ, जंगल, समुद्र, और जमीन के बदलावों को ट्रैक करना।

ghanty

Leave a comment