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अनुवाद नहीं होता तो ‘गीतांजलि’ को नोबेल नहीं मिलता: रावेल पुष्प

चित्तरंजन, 12 फरवरी 2025“अगर अनुवाद की परंपरा नहीं होती तो हम सभी साहित्य प्रेमी एकाकी रह जाते!” यह कहना है कोलकाता हिन्दी अकादमी के सचिव डॉ. रावेल पुष्प का, जिन्होंने रविवार को रूपनारायणपुर नान्दनिक हॉल में आयोजित एक साहित्य सभा में यह विचार व्यक्त किए।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “अगर रवींद्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का अनुवाद नहीं होता, तो यह विश्वभर में लोकप्रिय नहीं बनती और नोबेल पुरस्कार भी इसे नहीं मिलता।” उन्होंने साहित्य में अनुवाद की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि अनुवाद के जरिए ही हम विभिन्न भाषाओं की सुंदर रचनाओं से परिचित हो सकते हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान संभव हो पाता है।

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🔥 लघुकथा की बढ़ती लोकप्रियता पर जोर

कोलकाता की प्रसिद्ध लेखिका डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने इस अवसर पर लघुकथा की विशेषता पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, “पहले लघुकथा को पत्र-पत्रिकाओं में सिर्फ जगह भरने के लिए छापा जाता था, लेकिन आज यह साहित्य प्रेमियों के लिए अनिवार्य बन गई है।”

🌟 साहित्य सभा में कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति

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इस कार्यक्रम में विश्वदेव भट्टाचार्य, शताब्दी मजूमदार, भारतीय पत्रकार सुरक्षा संघ के पश्चिम बंगाल प्रभारी प्रह्लाद प्रसाद, प्रदीप बनर्जी, सुभाष चंद्र बोस, कवि अमित बागल, बासुदेव मंडल, जयंत सरकार, श्रावणी चक्रवर्ती, प्रसून राय सहित कई साहित्यकार उपस्थित थे।

कार्यक्रम का मंच संचालन अरिजीत ज्वारकार एवं ताप्ति दे ने संयुक्त रूप से किया।

📢 क्या आप भी अनुवाद को साहित्य के विकास के लिए जरूरी मानते हैं? अपनी राय कमेंट करें!

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