👉 बीते एक दशक में खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने की कोशिश
कोलकाता : पश्चिम बंगाल में अपनी खोई जमीन दोबारा पाने की कोशिश में सीपीआई (एम) ने राज्यभर में एक बड़ी पहल का ऐलान किया है। पार्टी 29 नवंबर से 17 दिसंबर तक 1,000 किलोमीटर लंबी ‘बंगाल बचाओ यात्रा’ निकालेगी। इस यात्रा का दावा है कि यह टीएमसी सरकार की ‘लूट, भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक गिरावट’ और केंद्र की बीजेपी सरकार की ‘जन-विरोधी नीतियों’ को उजागर करेगी।
कहां से कहां तक चलेगी यात्रा?
यात्रा 29 नवंबर को कूचबिहार जिले के तुफानगंज से शुरू होगी और 17 दिसंबर को उत्तर 24 परगना के कमरहाटी में खत्म होगी। इस दौरान यह 11 जिलों और आसपास के इलाकों में 1,000 किमी का सफर तय करेगी। पड़ोसी इलाकों से कई छोटी-छोटी उप-यात्राएं भी मुख्य यात्रा से जुड़ेंगी।
क्या मुद्दे उठाएगी माकपा?
पार्टी का कहना है कि यात्रा का रास्ता इस तरह बनाया गया है कि वह हर उस तबके तक पहुंचे जो ‘बदइंतजामी से परेशान’ है। जिन मुद्दों को खास तौर पर उठाया जाएगा, उनमें ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली, स्कूलों और शिक्षा व्यवस्था में गिरावट, किसानों और मजदूरों की परेशानी, चाय बागान मजदूरों, बीड़ी मजदूरों और प्रवासी मजदूरों की समस्याएं, गिग वर्करों की बदहाल स्थिति, महंगाई, बेरोजगारी और ग्रामीण संकट शामिल हैं।
टीएमसी और भाजपा दोनों पर वार
सीपीआई (एम) का आरोप है कि टीएमसी सरकार ने ‘लूट, डर और वसूली-आधारित शासन’ चलाकर लोगों की जिंदगी मुश्किल कर दी है। जबकि भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों ने ‘बेरोजगारी, महंगाई और किसानों-मजदूरों की परेशानी बढ़ाई है।’
‘यह सुधार की यात्रा है- सीपीआई (एम)
सीपीआई (एम) के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने पत्रकारों से कहा, ‘बंगाल सरकार ने राज्य को भ्रष्टाचार और बदहाली की कहानी बना दिया है। दूसरी तरफ केंद्र की नीतियों ने गरीब, किसान और मजदूरों को तबाह कर दिया है। यह यात्रा हमारे हक, सम्मान और लोकतंत्र को बहाल करने का संकल्प है।’ उनका कहना है कि यात्रा में उन लोगों की वास्तविक कहानियां सामने लाई जाएंगी जो ‘टीएमसी के भ्रष्टाचार और भाजपा की आर्थिक नीतियों के बीच पिस रहे हैं।’
क्यों अहम है यह यात्रा?
तीन दशकों तक बंगाल में सत्ता संभालने वाली सीपीआई (एम) पिछले दस वर्षों से लगातार राजनीतिक तौर पर कमजोर हुई है, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली। वहीं 2021 विधानसभा चुनावों में भी खाता नहीं खुला। साल 2011 में वाम मोर्चा का वोट शेयर 39% था, जो 2021 में घटकर लगभग 4.7% रह गया। कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद भी उनका साझा वोट प्रतिशत लगभग 10% पर अटका हुआ है। दूसरी ओर भाजपा अब करीब 39% विपक्षी वोट अपने खाते में रखती है, जिससे बंगाल की राजनीति पूरी तरह दो ध्रुवों, टीएमसी और भाजपा, के बीच सिमट गई है।












