नई दिल्ली (प्रेम शंकर चौबे) : हिंदू धर्म में छठ का पर्व बहुत ही विशेष और खास माना जाता है. इस त्योहार पर सूर्यदेव और छठी मैय्या की पूजा-उपासना की जाती है. छठ पर्व के ये 4 दिन बहुत ही खास माने जाते हैं, जो कि विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है. छठ पूजा को प्रतिहार, डाला छठ, छठी और सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है और इसका समापन सप्तमी तिथि पर होता है.
छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपने परिवार की संपन्नता-खुशहाली और पुत्र की दीर्घायु के लिए करती हैं और 36 घंटों के लिए व्रत निर्जला रखा जाता है. इस बार छठ के पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर, शनिवार से होने जा रही है और इसका समापन 28 अक्टूबर, मंगलवार को होगा. छठ पर्व के ये चार दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं जिसमें पहला होता है नहाय-खाय, दूसरा खरना, तीसरा संध्या अर्घ्य और चौथा ऊषा अर्घ्य-पारण. चलिए अब छठ के पर्व की सभी तिथियों के बारे में जानते हैं.
✔️ पहला दिन- नहाय खाय (25 अक्तूबर, शनिवार)
✔️ दूसरा दिन- खरना या लोहंडा (26 अक्तूबर, रविवार)
✔️ तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य (27 अक्तूबर, सोमवार) (सूर्यास्त- शाम 5.40 बजे)
✔️ चौथा दिन- ऊषा अर्घ्य (28 अक्तूबर, मंगलवार) (सूर्योदय- सुबह 6.30 बजे)
👉 पर्व के चार दिनों का महत्व
🔹नहाय खाय – छठ पूजा का पहला दिन होता है नहाय खाय. इस दिन व्रती किसी नदी या पोखर में स्नान करके, इस पवित्र व्रत की शुरुआत करती हैं. स्नान के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है, मुख्य रूप से लौकी की शुद्ध सब्जी बनाई जाती है, जिसे भगवान को अर्पित करने के बाद व्रती व समस्त परिवार ग्रहण करते हैं. इसके साथ ही व्रत की शुरुआत हो जाती है. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 28 मिनट पर होगा और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 42 मिनट पर होगा.
🔹खरना – छठ पूजा का दूसरा दिन होता है खरना. खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं. शाम के समय व्रती मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर गुड़ की खीर (रसिया) और घी से बनी रोटी तैयार करती हैं. सूर्य देव की विधिवत पूजा के बाद यही प्रसाद सबसे पहले ग्रहण किया जाता है. इस प्रसाद को खाने के बाद व्रती अगले 36 घंटों तक सूर्य को अर्घ्य देने तक अन्न और जल का पूर्ण रूप से त्याग करती हैं.
🔹संध्या अर्घ्य – छठ पूजा का तीसरा और महत्वपूर्ण दिन होता है संध्या अर्घ्य. इस दिन व्रती दिनभर बिना जल पिए निर्जला व्रत रखती हैं. फिर, शाम को व्रती नदी में डूबकी लगाते हुए ढलते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं. इस दिन सूर्य अस्त शाम 5 बजकर 40 मिनट पर होगा.
🔹ऊषा अर्घ्य – इस पूजा का चौथा और आखिरी दिन होता है ऊषा अर्घ्य. इस दिन सभी व्रती और भक्त नदी में डूबकी लगाते हुए उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर होगा. अर्घ्य देने के बाद, 36 घंटे का व्रत प्रसाद और जल ग्रहण करके खोला जाता है, जिसे पारण कहा जाता है.
👉 छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा सूर्य देव और उनकी बहन छठी मईया की आराधना का पर्व है, जिसे शुद्धता, आस्था और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है. इस दिन व्रती पूरी निष्ठा और संयम के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देकर जीवन में सुख, समृद्धि और संतानों के कल्याण की कामना करते हैं. यह पर्व प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना से जुड़ा है, जो मानव जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता के महत्व को दर्शाता है. पूरे विश्व में यही एक मात्र पर्व है, जिसे संपन्न कराने में किसी पुरोहित या आचार्य की आवश्यकता नहीं होती है. व्रती स्वयं सबकुछ संपन्न करते हैं. प्रकृति के हर रूप को इसमें पूजा जाता है. प्रसाद भी घर में ही तैयार किया जाता है. शुद्धता की अनूठी मिसाल इस पर्व में झलकती है.
🔹1. जिन लोगों को संतान नहीं हो रही है उन्हें ये व्रत लाभ देता है. इसके अलावा, संतान पक्ष से जुड़ी कोई समस्या हो तो भी ये व्रत लाभदायक कहलाता है.
🔹2. अगर कुष्ठ रोग या पाचन तंत्र की समस्या हो तो भी ये व्रत रखना शुभ है.
🔹3. कुंडली में सूर्य की स्थिति खराब हो तो भी ये व्रत रखना लाभकारी होगा.
👉 सबसे पवित्र परंपरा है ‘कोसी भराई’
छठ महापर्व के दौरान व्रतियां कोसी (हाथी) भरने की भी परंपरा निभाते हैं. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है, जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है. सूर्य षष्ठी की शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन करना बेहद शुभ और श्रेयकर माना गया है.

लोक आस्था का महापर्व छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें कोसी (हाथी) भरने की परंपरा है. इसमें मिट्टी के बने हाथी पर दीये बने होते हैं. कोई हाथी 6 दीए का रहता है तो कोई 12 दीए का और कोई 24 दीए का. हाथी को लोग पहले अर्घ्य के बाद अपने घर के आंगन या छत में भरते हैं. फिर अगली सुबह दूसरे अर्घ्य के बाद मिट्टी के हाथी को जल में विसर्जित कर दिया जाता है.
छठ में पहले अर्घ्य के बाद रात में घर में और अगले दिन सुबह भोर में घाट पर कोसी भरते हैं. ऐसे में जिन लोगों की मन्नतें पूरी हुई होती हैं या जिनके घर में कोई मांगलिक कार्य हुआ होता है, वह कोसी के साथ-साथ हाथी भी भरते हैं. जिसकी जितनी मन्नत होती है, उस हिसाब से हाथी भरा जाता है.
🔹जानिए पूजन की विधि
पंडित मधुसूदन त्रिवेदी ने बताया कि सूर्य की पूजा का अपना खास महत्व होता है. यह पर्व पुत्र, पति और परिवार जनों के सुख और समृद्धि के लिए मनाया जाता है. इस पर्व में लोग मन्नत रखते हैं और मन्नत पूरी होने पर लोग पूजन सामग्री का वितरण करते हैं या फिर कोसी भरते हैं.
छठ पूजा से पहले कम से कम चार या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलों का अर्कपात, केराव आदि रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है. फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी आदि सामग्रियां रखी जाती है.
कोसी पर एक दीया जलाया जाता है, फिर कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरे सूप, डलिया, तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रखकर दीप जलाए जाते हैं. अग्नि में धूप डालकर हवन करते हुए छठी मइया के सामने माथा टेककर आशीर्वाद लिया जाता है. अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी के घाट पर दोहराई जाती है. यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मां का आभार जताती हैं.
कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस राज रतजगा भी करता है. घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं, तो पुरुष भी इस कोसी की सेवा करते हैं. इसे ‘कोसी सेवना’ भी कहते हैं. जिस घर में कोसी की पूजा होती है, वहां रात भर उत्साह का माहौल होता है. काफी नियम और कायदे के साथ पहले अर्घ्य से दूसरे अर्घ्य तक कोसी की पूजा की जाती है और भगवान सूर्य का आभार व्यक्त किया जाता है.
👉 छठ पूजा का है वैज्ञानिक महत्व, कारण जान हो जाएंगे हैरान
छठ महापर्व का सिर्फ पौराणिक या सांस्कृतिक महत्व ही नहीं होता बल्कि वैज्ञानिक कारण भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. दरअसल षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है. इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें यानी कि अल्ट्रावायलेट किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं.

माना जाता है कि पराबैंगनी किरणों के कुप्रभावों से मनुष्य की रक्षा के लिए छठ महापर्व की परंपरा शुरू हुई. मान्यताओं के अनुसार छठ महापर्व के पालन से सूर्य के प्रकाश के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है. सूर्य ग्रह एक विशालकाय तारा है, जिसके चारों ओर आठों ग्रह और अनेकों उल्काएं चक्कर लगाते रहते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य जलता हुआ विशाल पिंड है. इसके गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही सभी ग्रह इसकी तरफ खींचे रहते हैं. अगर ऐसा न हो तो सभी अंधकार में लीन हो जाएंगे.
अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के समय मनुष्य पर सूर्य के किरणें पड़ती हैं. इसकी किरणों से चर्म रोग नहीं होता है और लोग निरोग होते हैं. कहा जाता है कि इससे सेहत से जुड़ी समस्याएं परेशान नहीं करती हैं. विज्ञान कहता है कि छठ के दौरान सूर्य उपासना करने से ऊर्जा का संचरण होता है और स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाए रखा जा सकता है. दीपावली के बाद सूर्यदेव का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है. इसलिए व्रत के साथ सूर्य के ताप के माध्यम से ऊर्जा का संचय किया जाता है, ताकि शरीर सर्दी में स्वस्थ रहे. इसके अलावा सर्दी आने से शरीर में कई परिवर्तन भी होते हैं. खास तौर से पाचन तंत्र से संबंधित परिर्वतन. छठ पर्व का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक होता है. इससे शरीर की आरोग्य क्षमता में वृद्धि होती है.
वेदों के अनुसार सूर्य जगत रूपी शरीर की आत्मा है. जिसके बिना धरती की कल्पना करना संभव नहीं है. भूलोक और देवलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक होता है. इस देवलोक में सूर्य भगवान, नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं. पुराणों अनुसार सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है. इनकी पत्नी का नाम संज्ञा है जो विश्वकर्मा की पुत्री है. संज्ञा से यम नामक पुत्र और यमुना नामक पुत्री तथा इनकी दूसरी पत्नी छाया से इनको एक महान प्रतापी पुत्र हुए जिनका नाम शनि है. इन तमाम कारणों के कारण की सूर्य की पूजा की परंपरा जो अनादि काल से चली आ रही है. आज भी निरंतर जारी है. मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के वनवास के दौरान माता सीता ने पहली बार छठपूजा की थी, इसके बाद द्वापर युग में द्रौपदी और कर्ण द्वारा भी छठपूजा करने की बात पुराणों में उल्लेखित है.












