👉 कोयला आपूर्ति और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए नई लिंकिंग नीति को मिली मंजूरी
आसनसोल (प्रेम शंकर चौबे): देश के कोयला सेक्टर में बड़ा रिफॉर्म किया गया है। केन्द्र सरकार ने कोयला लिंकिंग नीति में सुधार को लेकर बड़ा निर्णय लिया है। इसके लिए केंद्रीय कैबिनेट ने CoalSETU को मंजूरी दे दी गई है। ये कोयला आपूर्ति और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए नई नीति लागू करने का फैसला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में CoalSETU विंडो को मंजूरी दे दी गई है। इसके तहत अलग-अलग इंडस्ट्रियल इस्तेमाल और एक्सपोर्ट के लिए कोल लिंकेज की नीलामी, सही पहुंच और रिसोर्स का सबसे अच्छा इस्तेमाल पक्का करना है। लेकिन, इन सबके बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि केंद्र सरकार का यह प्रयास कोयला तस्करी पर लगाम कसने में कामयाब हो पाएगा… या फिर पूर्व की कोशिशों की तरह यह भी ढाक के तीन पात साबित हो जाएगी।
‘कोलसेतु’ के बारे में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा- ‘कोई भी घरेलू खरीदार लिंकेज ऑक्शन में हिस्सा ले सकता है। कोल लिंकेज होल्डर 50 फीसदी तक एक्सपोर्ट कर सकते हैं। मार्केट में गड़बड़ी रोकने के लिए ट्रेडर्स को हिस्सा लेने की इजाजत नहीं होगी।
अश्विनी वैष्णव ने बताया कि भारत कोयले के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है। 2024-2025 में भारत ने ऐतिहासिक रूप से एक अरब टन से ज्यादा कोयले का उत्पादन किया है। पहले कोयले के इंपोर्ट पर हमारी जो निर्भरता थी, अब वो करीब-करीब बहुत कम हो गई है। कोयले के इंपोर्ट पर निर्भरता कम होने से हमने 60 हजार करोड़ रुपए बचाए हैं।
बता दें कि ये निर्णय उस समय लिया गया है, जब कोल इंडिया की अहम सहायक कंपनियाँ क्रमशः ईसीएल और बीसीसीएल पर कोयला तस्करों की बुरी नजर है। कोल सिंडिकेट की मार ने तो ईसीएल की कमर ही तोड़ डाली है। भ्रष्टतंत्र पूरी तरह से हावी होने के बावजूद कार्रवाई नगण्य है। दो माह से ईसीएल के श्रमिकों-अधिकारियों को अपने वेतन के लिए जार-जार होना पड़ रहा है। ऐसे में ‘कोल सेतु’ ने एक आस जरूर जगाई है। क्योंकि कोयला तस्करी में एक बड़ा खेल लिंकेज के नाम पर ही होता रहा है। लेकिन, सवाल वही है कि क्या ‘कोल सेतु’ का आगाज जिस सोच के साथ किया जा रहा है, उसे अमलीजामा पहनाकर अंजाम तक पहुंचाया जाएगा, या फिर ये भी ‘खनन प्रहरी’ ऐप की तरह टांय-टांय फिस्स साबित हो जाएगा।
👉 महज 13 प्वाइंट्स में जानिए क्या है ‘कोल सेतु’
🔹‘सुगम, प्रभावी एवं पारदर्शी उपयोग के लिए कोयला लिंकेज की नीलामी नीति’ कोल सेतु है जो गैर-विनियमित क्षेत्र (एनआरएस) लिंकेज नीलामी नीति 2016 में एक अलग व्यवस्था के तौर पर जोड़ी जाएगी।
🔹कोयला लिंकेज का मतलब कोयले की आपूर्ति का अधिकार या अनुबंध से है। यह किसी उद्योग या संयंत्र को तय समय और मात्रा के लिए दिया जाता है।
🔹इस नीति के तहत किसी भी औद्योगिक उपयोग या निर्यात के लिए घरेलू खरीदार लंबे समय तक कोयले की नीलामी में भाग ले सकते हैं।
🔹अब कोई भी घरेलू खरीदार, चाहे उसे कोयले का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिए करना हो, कोयले की नीलामी में हिस्सा ले सकता है।
🔹’कोल सेतु’ व्यवस्था के तहत कोकिंग कोयला शामिल नहीं होगा।
🔹देश में कोयला उत्पादन इतना अधिक है कि अब निर्यात पर ध्यान दिया जा सकता है। इसके तहत जिनके पास कोयले की आपूर्ति है, वे अपनी कोयला मात्रा का 50 प्रतिशत तक निर्यात कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर समूह की कंपनियों में लचीले ढंग से उपयोग कर सकते हैं।
🔹फिलहाल सीमेंट, स्टील (कोकिंग), स्पंज आयरन और एल्युमिनियम जैसे गैर-नियंत्रित क्षेत्रों को कोयला लिंक नीलामी के माध्यम से आवंटन किया जाता है।
🔹एनआरएस लिंकेज नीति, 2016 में एक अलग ‘कोलसेतु’ विंडो जोड़ी गई है, जिसमें कोयले के अंतिम उपयोग को लेकर किसी तरह की पाबंदी नहीं होगी।
🔹नई नीति के तहत कोयला लिंकेज का उपयोग घरेलू खपत, धुलाई (कोल वॉशिंग), निर्यात या किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए किया जा सकेगा।
🔹घरेलू स्तर पर दोबारा बिक्री की अनुमति नहीं होगी।
🔹इसके अलावा कोयला कारोबारी भी इस ‘विंडो’ में भाग नहीं ले सकेंगे।
🔹यह संशोधन कोयला क्षेत्र को व्यावसायिक खनन के लिए खोलने की नीति के अनुरूप है, जहां कोयला ब्लॉक के आवंटन पर किसी प्रकार की अंतिम उपयोग शर्तें नहीं हैं।
🔹नई व्यवस्था घरेलू कोयला भंडारों के उपयोग में तेजी लाएगी और ऊर्जा जरूरतों के लिए आयातित कोयले पर निर्भरता घटाएगी।
👉 सिर्फ नाम का रह गया है ‘खनन प्रहरी’ ऐप
कोयला मंत्रालय ने अवैध कोयला खनन गतिविधियों और कोयला तस्करी पर लगाम कसने के इरादे से क्रांतिकारी कदम उठाते हुए वर्ष 2023 में ही ‘खनन प्रहरी’ मोबाइल ऐप लॉन्च किया था। इस ऐप को मोबाइल में इंस्टॉल कर कोई भी अवैध कोयला खनन और कोयला तस्करी से जुड़ी सूचनाएं, फोटो या वीडियो सीधे कोयला मंत्रालय को साझा कर सकता है। अपनी शिकायतें दर्ज करवा सकता है। ऐप में ये सारे ऑप्शन मौजूद हैं।

उपयोगकर्ता तस्वीरें लेकर और घटना पर टिप्पणियाँ प्रदान करके आसानी से अवैध खनन की घटनाओं की रिपोर्ट कर सकते हैं। गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उपयोगकर्ता की पहचान गोपनीय रखी जाती है। शिकायतकर्ताओं को एक शिकायत संख्या प्राप्त होती है, जिसका उपयोग वे अपनी रिपोर्ट की गई शिकायतों की स्थिति को आसानी से ट्रैक करने के लिये कर सकते हैं। लेकिन, आज इस ऐप की उपयोगिता नाम मात्र भी नहीं रह गई है। इस ऐप के संबंध में प्रचार-प्रसार करने से कोयला अधिकारी और पुलिस-प्रशासन भी बचते हैं।
✔️भारत में कोयला उद्योग का इतिहास
🔹भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक, साथ ही कोयला भंडार के मामले में 5वाँ सबसे बड़ा देश है। इसे अमूमन ‘काला सोना’ के नाम से जाना जाता है।
🔹झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और तेलंगाना प्रमुख कोयला उत्पादक राज्यों में से हैं।
🔹भारत में कोयला खनन का लगभग 220 वर्षों का एक समृद्ध इतिहास है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1774 में रानीगंज कोयला क्षेत्र में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा हुई थी। कालांतर में कार एंड टैगोर कंपनी ने इसे आगे बढ़ाया।
🔹स्वतंत्रता के पश्चात् कोयला उद्योग के व्यवस्थित विकास के लिये वर्ष 1956 में राष्ट्रीय कोयला विकास निगम (NCDC) की स्थापना की गई थी।
🔹कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण दो चरणों में हुआ जिसकी शुरुआत वर्ष 1971-72 में कोकिंग कोयला खदानों, साथ ही वर्ष 1973 में गैर-कोकिंग खदानों से हुई।
🔹इस कदम का उद्देश्य अवैज्ञानिक खनन प्रथाओं और दीन श्रम स्थितियों के मुद्दों का समाधान करना था। राष्ट्रीयकरण कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 तक जारी रहा।
🔹राष्ट्रीयकरण के बाद भारत को वर्ष 1991 तक न्यूनतम मांग-आपूर्ति अंतराल का सामना करना पड़ा। वर्ष 1993 में उदारीकरण सुधारों ने कैप्टिव खपत के लिये कोयला खदान आवंटन की अनुमति दी।
🔹कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 द्वारा नीलामी के माध्यम से कोयला खदान आवंटन कार्य संभव हो पाया। वर्ष 2018 में निजी कंपनियों को वाणिज्यिक कोयला खनन की अनुमति दी गई थी।












