बराकर नदी तट पर हजारों महिलाओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत कर मांगी संतान की लंबी उम्र

बराकर:
बराकर नदी तट पर रविवार को आस्था और परंपरा का अनूठा संगम देखने को मिला। वार्ड 76 सहित बराकर और आस-पास के क्षेत्रों से हजारों महिलाएं दोपहर बाद नदी तट पर पहुंचीं और स्नान-पूजन के बाद निर्जला उपवास रखकर जीवित्पुत्रिका व्रत किया। माताओं ने अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पारंपरिक कथाएं सुनीं और मंत्रोच्चार के साथ व्रत पूरा किया।

स्थानीय समाजसेवियों के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत की तीन प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं —

  • सियारिन-चील की कथा,
  • राजा जीमूतवाहन की कथा,
  • और भगवान श्रीकृष्ण व उत्तरा-परीक्षित से जुड़ी कथा।

पहली कथा में सियारिन और चील की मित्रता व व्रत पालन की कहानी है। दूसरी कथा में गंधर्वराज जीमूतवाहन की वीरता और त्याग है, जिन्होंने नागवंश के पुत्र को बचाने के लिए खुद को बलिदान में सौंप दिया। तीसरी कथा महाभारत काल से जुड़ी है जिसमें भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भस्थ शिशु को जीवनदान दिया और तभी से जीवित्पुत्रिका व्रत की परंपरा शुरू हुई।

रविवार को बराकर में महिलाओं ने परंपरागत विधि से कथा सुनी। निर्जला उपवास करने वाली कई महिलाओं ने बताया कि वे वर्षों से यह व्रत कर रही हैं और उन्होंने अपने बच्चों को स्वस्थ और लंबी उम्र पाया।

राज्य के कानून एवं श्रम मंत्री मलय घटक के सहयोग से स्थानीय प्रशासन ने नदी तट पर साफ-सफाई, जल और चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था भी कराई। इस अवसर पर स्थानीय जनप्रतिनिधि और विभिन्न सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता भी मौजूद रहे।

पंडितों और आयोजकों ने कहा कि यह व्रत मातृत्व और त्याग का प्रतीक है। आधुनिक दौर में भी महिलाएं इसे पूरे विश्वास और आस्था के साथ निभा रही हैं।

ghanty

Leave a comment