👉 2026 के बंगाल विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर नजर
कोलकाता (प्रेम शंकर चौबे) : अगले साल प्रस्तावित पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की एंट्री होगी। एआईएमआईएम ने बंगाल के दो अल्पसंख्यक बहुल जिलों मालदा और मुर्शिदाबाद में अपने संगठनात्मक आधार को मजबूत करना शुरू कर दिया है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का मालदा पर विशेष ध्यान है। बिहार चुनाव में 5 सीटों पर धमाकेदार जीत से लबरेज ओवैसी अब बंगाल में फोकस कर रहे हैं। दरअसल, ओवैसी का लक्ष्य केवल सीटें जीतना ही नहीं, बल्कि तेलंगाना से निकलकर राष्ट्रीय पहचान हासिल करना भी है। उन्हें भरोसा है कि बिहार के सीमांचल में मिली सफलता से अब बंगाल में पार्टी के विस्तार का रास्ता खुलेगा और आगे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को नई ताकत मिलेगी।
बिहार के सीमांचल और बंगाल का सामाजिक स्वरूप एक जैसा
दरअसल, बिहार के सीमांचल और बंगाल का सामाजिक स्वरूप एक जैसा है। भौगोलिक और सामाजिक ढांचा भी बंगाल के उत्तरी जिलों मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर दिनाजपुर से मिलता-जुलता है। दोनों इलाकों में मुस्लिम आबादी 40 से 60 प्रतिशत के बीच है और आर्थिक असमानता की स्थिति भी लगभग समान है। ऐसे में अगर एमआइएम सीमांचल में कामयाब हो गई है तो ओवैसी इसी मॉडल को बंगाल में दोहराने की कोशिश करेंगे। यह रणनीति खास तौर पर उन युवाओं को आकर्षित कर सकती है जो पारंपरिक दलों से नाराज हैं और अपने सामाजिक प्रतिनिधित्व की तलाश में हैं।
आसान नहीं है बंगाल में ओवैसी की राह
बंगाल में ओवैसी ने 2021 में तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश की थी, मगर ममता बनर्जी ने भाव नहीं दिया। बंगाल में ओवैसी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि टीएमसी उन्हें “वोट काटने वाली पार्टी” बताकर मुस्लिम मतदाताओं को सावधान कर रही है। मगर ओवैसी इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि अगर विपक्ष ने उन्हें साथ लिया, तो वोटों का विभाजन नहीं होता। वह खुद को उन वर्गों की आवाज बताते हैं जिन्हें लंबे समय से राजनीति में हाशिए पर रखा गया है। ओवैसी ने बिहार में इस बार गैर-मुस्लिमों को भी टिकट देकर संदेश दिया है कि एमआइएम अपने दायरे को विस्तार देना चाहती है।
बंगाल में निर्णायक भूमिका में मुस्लिम मतदाता
कुछ इसी तरह की रणनीति बंगाल में भी अपनाने की योजना बनाई गई है, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में तो हैं, मगर तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के बीच बंटे हुए हैं। जाहिर है, सीमांचल में ओवैसी की सफलता सिर्फ क्षेत्रीय उपलब्धि नहीं है, बल्कि उनके राष्ट्रीय विस्तार की सीढ़ी साबित हो सकती है।
मालदा के लिए पार्टी ने बनाई कमेटी, उतारेगी उम्मीदवार
एआईएमआईएम की बंगाल इकाई ने प्रचार शुरू करने के लिए मालदा में पार्टी के ब्लॉक अध्यक्षों और ब्लॉक उपाध्यक्षों के नामों की घोषणा की है। इसे अगले साल होने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में राज्य के चुनिंदा अल्पसंख्यक बहुल निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवार उतारने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। एआईएमआईएम के मालदा जिला अध्यक्ष रेजायुल करीम के अनुसार, पार्टी का राज्य नेतृत्व जिले के सभी 12 विधानसभा क्षेत्रों से उम्मीदवार उतारने को लेकर आश्वस्त है। उन्होंने कहा कि 2026 के चुनावों के प्रचार के दौरान पार्टी की ओर से उठाए जाने वाले मुद्दे राज्य और जिला स्तर से जुड़े होंगे।
तृणमूल शासन के भ्रष्टाचार पर साधा निशाना
करीम ने कहा कि राज्य स्तर पर जहां पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को प्रमुखता दी जाएगी, वहीं जिला स्तर पर मालदा जिले में सामाजिक बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति को प्रमुखता दी जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य पार्टी नेतृत्व को विश्वास है कि मालदा में अन्य दलों के मतदाता एआईएमआईएम की ओर रुख करेंगे।
मुर्शिदाबाद जिले पर भी पैनी नजर
इस बीच, पार्टी के एक राज्य नेता ने कहा कि मालदा के अलावा, पार्टी की योजना मालदा से सटे और अल्पसंख्यक बहुल मुर्शिदाबाद जिले के चुनिंदा विधानसभा क्षेत्रों से भी उम्मीदवार उतारने की है। हालांकि, मुर्शिदाबाद में 2026 में एआईएमआईएम कितने विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारेगी, यह अभी तय नहीं हुआ है।
टीएमसी के आरोपों को पार्टी अध्यक्ष ने किया खारिज
इससे पहले, तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व ने एआईएमआईएम पर हमला बोला था और उस पर अल्पसंख्यक वोटों को विभाजित करके चुनावों में भाजपा की कठपुतली की तरह काम करने का आरोप लगाया। हालांकि, पश्चिम बंगाल में एआईएमआईएम के राज्य नेता नबीउल अंसारी ने राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के आरोपों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि किसी भी चुनाव में पार्टी उन निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवार उतारती है जहां जीत की संभावना होती है और 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी यही सिद्धांत लागू होगा।












