👉 वैध-अवैध के भयावह खेल में गवाही सिर्फ इसे अपने कोख में पालने वाले दामोदर-अजय के पास
आसनसोल : दशकों से तस्करी के लिए बदनाम शिल्पांचल के लिए कोयला चोरी और बालू खनन कोई नई बात नहीं है। लेकिन, आधुनिक दौर में तस्करी की बदली-बदली बयार ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ईडी और पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई के बीच करोड़ों के इस गोरखधंधे को जिस संगठित तौर पर संचालित किया जा रहा है, उसमें सबसे बड़ा प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर कौन है वह? जिसे अजय-दामोदर से प्यार नहीं, जो इस पर निर्मम वार कर शिल्पांचल के सम्मान को तार-तार कर रहा है। कोयला से लेकर बालू तस्करी के मामले में एक ओर जहां केंद्रीय जांच एजेंसियां पिछले कुछ महीनों से अति सक्रिय है। तो वहीं, सत्ता पक्ष और विपक्ष में इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।
पश्चिम बंगाल में साल 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके पहले बालू सिंडिकेट के निशाने पर शिल्पांचल के अजय और दामोदर नदी है। बीते सितंबर माह से ही केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम पूरे बंगाल में नियमित रूप से सर्च ऑपरेशन चला रही है। बालू तस्करी को लेकर अब तक चार बार रेड डाली जा चुकी है, जबकि कोयला तस्करी मामले में एक बार में ही व्यापक व समन्वित कार्रवाई की गई है। इन अभियानों के दौरान करोड़ों रुपयों, जेवरातों, दस्तावेजों और डिजिटल डिवाइसों की बरामदगी हो चुकी है। बालू कारोबारी जगत में अहम स्थान रखने वाले अरूण सराफ की गिरफ्तारी हो चुकी है। बंगाल-झारखंड के बॉर्डर क्षेत्र में एक्टिव कोल सिंडिकेट की पहचान हो चुकी है। केके-एलबी सिंडिकेट के नेक्सस को डिकोड करने पर जांच चल रही है। कइयों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। कोल सिंडिकेट के मास्टरमाइंड भूमिगत बताए जा रहे हैं। ऑपरेटर भी अंडरग्राउंड हैं। हालांकि, गुर्गों द्वारा जमीन बचाने की लड़ाई लड़ी जा रही है। मास्टरमाइंड द्वारा दिल्ली दरबार किया जा रहा है। ईडी को भी मैनेज करने के लिए पेशकश की जा चुकी है।
इन सबके बीच कोल सिंडिकेट के ही सदस्यों द्वारा अवैध कमाई को जारी रखने का साधन ढूंढ़ निकाला गया है। अब बालू सिंडिकेट बनाकर करोड़ों की खुलेआम लूटपाट की जा रही है। अदृश्य ताकत का पूर्ण समर्थन है। बड़ी बात है कि संगठित रूप से पूर्ण संरक्षण के साथ सुनियोजित रूप से तस्करी को अंजाम दिया जाता है। हालात ऐसे हैं कि पुलिस-प्रशासन तमाशबीन बनी रह जाती है। बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस को इसकी भनक नहीं लगती? अगर नहीं लगती है तो पुलिसिया नेटवर्क को मजबूत करने की जरूरत है और अगर भनक रहने के बावजूद कार्रवाई नहीं होती है तो यह साफ हो जाता है कि तंत्र पर राजनीति पूर्ण रूप से हावी है।

जिस तरह से अजय-दामोदर के साथ ही इससे जुड़े उपनदियों पर बालू तस्करों की गंदी नजर है और बेखौफ येन-केन पद्धति से बालू निकाला जा रहा है, उससे अजय-दामोदर की भूमिका बदलती जा रही है। दामोदर और अजय की धारा को रोक दिया जा रहा है, मोड़ दिया जा रहा है, मनमर्जी रूप से गड्ढे खोद डाले जा रहे हैं। इनके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। अगर भविष्य में अजय-दामोदर ने अपना रास्ता बदल लिया तो फिर इसकी भरपाई नामुमकिन हो जाएगी। पहले माफियाओं में शर्मिंदगी होती थी तो जनता की नजर से बचने के लिए रात के अंधेरे में बालू ट्रांसपोर्टिंग की जाती थी। लेकिन अब माफिया-सिंडिकेट का दुस्साहस इस कदर से बढ़ गया है या फिर यह कहें कि प्रशासन का खौफ खत्म हो गया है या अदृश्य शक्ति से वरदान मिला हुआ है कि अब तो दिन के उजाले में ही यह गोरखधंधा खुलेआम चल रहा है।
आधुनिक युग में तस्करी भी हाईटेक होती जा रही है… और बालू के अवैध खनन में भी इसका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है। पहली बात तो नदी की सीमा कोई तय नहीं कर सकता और दूसरी बात तो बालू का परिमाण मापना भी मुश्किल है। बस सारा खेल यहीं से शुरू होता है। दामोदर और अजय की विनाश लीला का सबसे बड़ा कारण यही खेल है। दामोदर एक ओर पुरुलिया और बांकुड़ा के सीमा से तो अजय बीरभूम जिले के सीमा से लगती है। इन दोनों नदियों से बालू निकासी की वैध अनुमति सीमा पार के जिला प्रशासन से मिलती है और तस्कर इस पार के घाटों में जुट जाते हैं गलत फायदा उठाने के लिए। उदाहरण के लिए अनुमति रोजाना 10 ट्रक या 200 सीएफटी बालू निकालने की मिलती है और माफिया-तस्कर सिंडिकेट मिलकर रोजाना एक-एक घाट से 200-200 ट्रक बालू निकालते हैं। हजारों-हजार सीएफटी बालू को स्टॉक कर सड़क किनारे ही रखा जाता है।
बालू तस्करी में सरकारी नियमों की धज्जियां जिस तरह से उड़ाई जाती है उतनी तो पाकिस्तान की बेइज्जती भी सोशल मीडिया में नहीं हो पाती। क्षमता व अनुमति से अधिक ट्रकों में बालू लोडिंग कर, ट्रकों के नंबरों में हेर-फेर कर, फर्जी चालान बनाकर, सीओ में घपला कर, एक ही वाहन नंबर का इस्तेमाल कई ट्रकों में करके धड़ल्ले से बालू तस्करी की जाती है। अब इस हाईटेक युग में ड्रेजिंग के नाम पर दामोदर-अजय का न सिर्फ दोहन किया जा रहा है, बल्कि आम लोगों की जिंदगी छीन ली जा रही है। परोक्ष रूप से बालू तस्करी के कारण हाल के वर्षों में अजय-दामोदर में डूब कर मरने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हालांकि जिला प्रशासन को अब इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता कि कोई जीवीत रहे या मरे।
हाईटेक तस्करी का नमूना यह भी होता है कि ई-चालान तक में फर्जीवाड़ा कर दिया जाता है। पहले से ही बड़ी संख्या में चालान संग्रहित कर लिये जाते हैं। सरकारी टेंडर अगर डामरा घाट का है तो तिराट से बालू निकाला जाता है और अगर तिराट का है तो बालू निकासी बल्लभपुर से की जाती है। उस पर भी होता यह है कि अगर एक घाट की अनुमति हो तो आस-पास के घाट की स्वतः अनुमति माफिया खुद बना लेते हैं। बरसात के दौरान एनजीटी के नियमों का भी पालन नहीं किया जाता है। यहां तक कि जिलाशासक (डीएम) द्वारा जारी आदेश भी नाकाफी साबित होते हैं।

अजय-दामोदर के बालू घाटों को लेकर वैध-अवैध का भी खेल भरपूर चलता है। आवाज उठाने पर फौरन वैध घाट बताकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। लेकिन न तो चालान सही पाए जाते हैं, न ही परमिट। यही नहीं चालान दूसरे जिले का होता है, लेकिन ओवरलोड ट्रांसपोर्टिंग यहां की जाती है। घाट और बालू वैध हैं या अवैध? इसकी गवाही स्वयं इसे अपने कोख में पालने वाले अजय और दामोदर ही दे सकते हैं। बाकि सबके लिए तो बस मूकदर्शक बने रहकर मोटी मलाई चाभना ही नित्यकर्म है।
गुरुवार की सुबह में बीजेपी की विधायक अग्निमित्रा पाल ने डामरा में दामोदर घाट पहुंचकर बालू तस्करी के भंडाफोड़ का दावा किया। विधायक ने मौके पर सवाल उठाया कि अगर बालू पूरी तरह वैध है, तो अचानक ट्रकों में लदे बालू को खाली करने की जरूरत क्यों पड़ी। कई ट्रक चालक मौके से भागने की कोशिश में थे, लेकिन अग्निमित्रा पाल ने स्वयं कई ट्रकों की चाबी निकालकर पुलिस को सौंप दी। घाट पर बने कच्चे रास्ते और बड़ी संख्या में खड़े ट्रकों को देखकर विधायक ने इसे अवैध कारोबार का संकेत बताया। उनका आरोप था कि डामरा घाट पर बालू निकासी पूरी तरह नियमों के खिलाफ हो रही है। मौके पर पुलिस अधिकारियों और भाजपा नेताओं के बीच बहस भी हुई। पुलिस का कहना था कि बालू हीरापुर के लीगल घाट से लाई जा रही है। लेकिन विधायक ने तुरंत प्रश्न उठाया- “अगर सब वैध है, तो अनलोड क्यों किया जा रहा है? चालान दिखाइए।” मौके पर पुलिस कोई चालान नहीं दिखा सकी, जिससे तनाव और बढ़ गया।

विधायक अग्निमित्रा पाल ने पप्पू, बिबेक सहित कई बालू माफियाओं के खिलाफ आसनसोल नॉर्थ थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई। थाने के बाहर भी भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन, बड़ा सवाल है कि पुलिस इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी या फिर मूकदर्शक और तमाशबीन बनी रहेगी। विधायक ने कहा कि घाटों पर तय मानकों से अधिक बालू निकाला जा रहा है और इसे “खुली लूट” बताते हुए दावा किया कि सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी, कमिश्नरेट पुलिस, राज्य सरकार और बालू माफिया के बीच गहरी साठगांठ है। विधायक ने स्थानीय मंत्री, मेयर और तृणमूल जिलाध्यक्ष का नाम लेते हुए उनसे सवाल किया कि इतने बड़े पैमाने पर लूट-खसोट होने के बावजूद उनलोगों की आंखें क्यों बंद है। आसनसोल की जनता को बालू नहीं मिल रहा है। एक ट्रैक्टर बालू की कीमत पांच हजार रुपए तक पहुंच गई है, जबकि दामोदर को बर्बाद कर यहां से बालू की अवैध आपूर्ति कोलकाता तक की जा रही है।













