आसनसोल/दुर्गापुर (प्रेम शंकर चौबे) : पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की घोषणा के साथ ही सियासत तेज हो गई है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चरम पर है। इस बीच राज्य के विभिन्न हिस्सों में कथित तौर पर SIR की वजह से 4 लोगों की मौत होने के मामले सामने आ चुके हैं। इसे लेकर टीएमसी-बीजेपी आमने-सामने हैं। टीएमसी साफ कह चुकी है कि SIR के नाम पर बीजेपी पिछले दरवाजे से NRC लागू करने की कोशिश में है। वहीं, भाजपा का आरोप है कि अवैध वोटरों और बांग्लादेशियों के सहारे टीएमसी अब तक जीत दर्ज करती आई है, इसीलिए SIR को रोकने के लिए साजिश रची जा रही है। इन सबके बीच SIR की प्रक्रिया पूरी करने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले बूथ लेबल अफसर (BLO) की जान पर आफत बन आई है। शिल्पांचल में BLO को डर सताने लगा है। वे लोग अपनी सुरक्षा और अधिकार की मांग कर रहे हैं। अपनी मांग के समर्थन में विरोध भी जता रहे हैं। शनिवार को आसनसोल और दुर्गापुर में पृथक रूप से जिला प्रशासन द्वारा चुनाव आयोग के निर्देशानुसार जिले के तमाम BLO को प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान दुर्गापुर में जहां BLO द्वारा सामूहिक रूप से विरोध जताया गया। तो वहीं, आसनसोल में BLO ने कई ऐसे सवाल खड़े किए, जो हर मायने में उचित और वाजिब दिखे। मुख्य रूप से BLO द्वारा सुरक्षा और ड्यूटी स्टेटस की आधिकारिक मान्यता की मांग की जा रही है।
🔹बंगाल में 80 हजार से ज्यादा बीएलओ को दिया गया प्रशिक्षण
पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग (ईसी) ने शनिवार को मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के तहत 80,000 से अधिक बूथ लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया। लेकिन इस दौरान कई बीएलओ एक अधिकारी ने बताया कि शनिवार को कुल 80,861 बीएलओ को प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें बताया गया कि कैसे वे मतदाता सत्यापन फॉर्म की जांच करेंगे, मतदाताओं से समन्वय बनाएंगे और बीएलओ एप पर जानकारी अपलोड करेंगे। प्रत्येक बीएलओ को एक किट दी गई, जिसमें पहचान पत्र और टोपी शामिल थी। चुनाव आयोग ने बीएलओ के लिए 16 बिंदुओं वाले दिशा-निर्देश जारी किए हैं और काम को आसान बनाने के लिए एक नया मोबाइल ऐप भी शुरू किया है।
🔹क्यों है बीएलओ का विरोध?
हालांकि, कई बीएलओ ने शिकायत की कि प्रशिक्षण सत्रों के दौरान प्रशासनिक और सुरक्षा इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं। उन्होंने मांग की कि उनके प्रशिक्षण और फील्डवर्क को आधिकारिक ड्यूटी के रूप में दर्ज किया जाए, ताकि स्कूलों में उन्हें अनुपस्थित न दिखाया जाए। शिक्षक जो बीएलओ के रूप में ड्यूटी कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि उनके स्कूलों में उन्हें अनुपस्थित चिह्नित किया जा रहा है, जबकि वे चुनाव आयोग के काम में लगे हुए हैं। उनका कहना है कि बीएलओ के रूप में किया गया कार्य ऑन ड्यूटी माना जाए।
🔹दुर्गापुर में बड़ी तादाद में BLO ने जताया सामूहिक विरोध
इसी तरह दुर्गापुर के एसडीओ कार्यालय में भी बीएलओ ने सामूहिक रूप से विरोध जताया। एक शिक्षक ने कहा, ‘आज जो फॉर्म हमें दिया गया, उसमें बीएलओ प्रशिक्षण का कोई आधिकारिक उल्लेख नहीं है। पहले के प्रशिक्षण में हमें प्रमाणपत्र दिया जाता था। हम वही व्यवस्था फिर से चाहते हैं।’ एक अन्य बीएलओ ने कहा, ‘हम काम करने को तैयार हैं, लेकिन हमें सही दस्तावेज़ और सुरक्षा चाहिए। बिना इनके हम आगे नहीं बढ़ सकते।’
🔹BLO की सुरक्षा पर चुनाव आयोग का रुख
चुनाव आयोग के आधिकारिक सूत्रों ने स्पष्ट किया कि प्रशिक्षण अवधि में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती नहीं की जाएगी। राज्य प्रशासन को ही बीएलओ की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। आयोग ने बड़े बूथों में दो बीएलओ तैनात करने के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया।
🔹राज्य में 24 DEO और तीन हजार ERO को दिया गया प्रशिक्षण
इससे पहले शुक्रवार को आयोग ने राज्यभर में 3,000 से अधिक चुनाव निबंधन अधिकारी (ईआरओ), सहायक ईआरओ और जिला चुनाव अधिकारी (डीईओ)का प्रशिक्षण आयोजित किया था। अब जिला चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि बीएलए का प्रशिक्षण 3 नवम्बर तक पूरा किया जाए। यदि किसी राजनीतिक दल की तरफ से नाम बाद में भेजे जाते हैं, तो उनके लिए अलग प्रशिक्षण सत्र बाद में आयोजित किए जाएंगे। चुनाव आयोग रविवार और सोमवार को राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) को भी प्रशिक्षण देगा। गणना प्रक्रिया के दौरान BLO को BLA सहयोग करेंगे। पूरा प्रशिक्षण 3 नवम्बर तक चलेगा, जिसके बाद 4 नवम्बर से बीएलओ घर-घर जाकर मतदाता सूची का सत्यापन और फॉर्म भरने का काम (गणना) शुरू करेंगे।
🔹शिल्पांचल में आखिर BLO को क्यों सता रहा डर?
शिल्पांचल का चुनावी इतिहास रक्तपात से अटा पड़ा है। हाल के समय में राजनीतिक खूनी संघर्ष चरम पर पहुंचा है। सत्ता में बने रहने की हनक जान लेने और जान देने पर आमादा रहती है। पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो शायद ही कोई ऐसा चुनाव हो, जहां लहू नहीं बहा हो। मतदान के दिन सबसे ज्यादा खून-खराबा होता है। बम-गोली पर कोई कंट्रोल नहीं रहता है। धारदार हथियार खुलेआम लहराए जाते है। पुलिस-प्रशासन बेबस नजर आती है। मतगणना के दौरान भी तनाव रहती है। वहीं, चुनाव प्रचार बगैर उत्तेजनापूर्ण माहौल के पूरा ही नहीं हो पाता है। आसनसोल (उत्तर) थाना क्षेत्र में विधानसभा चुनाव के दौरान युवक की हत्या का मामला हो या फिर पंचायत चुनाव के दौरान जामुड़िया में महज आधे घंटे के अंदर दो-दो हत्याओं की वारदात हो… यह सब कुछ यहां की जनता के जेहन में दबी पड़ी है। ऐसे में साल 2002 के बाद राज्य में एसआईआर की प्रक्रिया हो रही है, तो पेशे से शिक्षक इन बीएलओ को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। राजनीतिक आकाओं को नाराज नहीं करने के साथ चुनाव आयोग का काम सही से करने और उस पर भी आम जनता के बीच जाकर काम पूरा करने की नौबत।

















