कांकसा।
सरकारी दफ्तरों में लापरवाही और देरी कोई नई बात नहीं, लेकिन कांकसा के मोलानदिघी ग्राम पंचायत कार्यालय का हाल देखकर ग्रामीण दंग रह गए। सुबह 10 बजे से खुलने वाले कार्यालय में न प्रधान का अता-पता था, न उपप्रधान का और न ही बाकी कर्मचारी समय पर मौजूद थे। 11 बजने तक भी दफ्तर वीरान पड़ा रहा।
कार्यालय के बाहर चाय की दुकान पर चौथी श्रेणी के कर्मचारी तुषार कांती मुखोपाध्याय आराम से चाय की चुस्की लेते देखे गए। जब उनसे पूछा गया कि काम क्यों शुरू नहीं हुआ, तो उन्होंने साफ कहा— “प्रधान नहीं आए, उपप्रधान नहीं आए, कर्मचारी भी नहीं आए।” यानी दरवाज़ा खुला था, पर काम ठप पड़ा था।
अंदर एक अस्थायी कर्मचारी बिना किसी काम के चुपचाप बैठा था। एक अन्य बाहर खड़ा था, और दोनों को ही यह पता नहीं था कि काम आखिर कब शुरू होगा। इस आलसी माहौल पर एक राहगीर ने तंज कसा— “यह कार्यालय शायद धूप-बरसात देखकर खुलता है।”
विपक्ष और सत्ताधारी दोनों में नाराज़गी
सीपीएम के क्षेत्रीय समिति सदस्य संदीपन बंद्योपाध्याय ने कहा—
“सेवा तो किसी तरह मिलती है, लेकिन कर्मचारी समय पर नहीं आते। लगता है विकास की लहर में ये भी बह गए हैं।”
वहीं, कांकसा पंचायत समिति के कार्याध्यक्ष एवं ब्लॉक तृणमूल अध्यक्ष नव कुमार सामंत ने माना कि शिकायत मिली है और आश्वासन दिया—
“जांच की जाएगी और अगर सच साबित हुआ तो सख्त कार्रवाई होगी।”
जनता का सवाल
ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत कार्यालय ही आम जनता की पहली उम्मीद होती है। राशन कार्ड, पेंशन, भूमि विवाद, किसान योजनाएं—हर छोटी-बड़ी समस्या का हल यहीं निकलता है। लेकिन जब कर्मचारी खुद समय पर न आएं, तो आम लोग दर-दर भटकते हैं।
अब देखना यह होगा कि पहले सुधरता कौन है—कार्यालय प्रशासन या घड़ी की सुई।












