कोलकाता में जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द, कट्टरपंथियों और सरकार पर भड़के राइटर-एक्टिविस्ट

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कोलकाता : महानगर के नागरिक अधिकार समूहों ने पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी के एक कार्यक्रम को रद्द करने पर चिंता व्यक्त की है, जिसमें प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर भी शामिल होने वाले थे. मानवाधिकार समूहों ने कहा कि राज्य सरकार कट्टरपंथी ताकतों के आगे झुक गई है, वहीं कार्यक्रम का विरोध करने वालों ने कहा कि वे पश्चिम बंगाल की सांप्रदायिक सौहार्द्रता को भंग नहीं करना चाहते.

कोलकाता के सबसे पुराने मानवाधिकार समूहों में से एक, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर) ने कार्यक्रम रद्द करने की निंदा की है और इस बात पर ज़ोर दिया है कि सरकार धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने के अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रही है.

एपीडीआर के महासचिव रंजीत सूर ने बताया कि सरकार से कार्यक्रम को फिर से शुरू करने की अपील करने का कोई फायदा नहीं है. क्योंकि यह फैसला सरकार के शीर्षस्थ लोगों ने लिया है. यह चुनाव से ठीक पहले लिया गया एक राजनीतिक फैसला है, क्योंकि राज्य किसी खास समूह को नाराज़ नहीं करना चाहता.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने किया विरोध

इस कार्यक्रम का विरोध करने वाले समूहों में से एक, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि वे वरिष्ठ गीतकार जावेद अख्तर के इस कार्यक्रम में शामिल होने का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ‘इस्लाम सहित सभी धर्मों का अपमान किया है. एक अन्य समूह वहयाहिन फाउंडेशन ने भी इस कार्यक्रम का विरोध किया.

कोलकाता जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव जिल्लुर रहमान आरिफ ने कहा कि वह नास्तिक हो सकते हैं, हमें इससे कोई समस्या नहीं है, लेकिन उन्हें दूसरों के धर्मों का अपमान करने का अधिकार नहीं है. हम पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक सद्भाव के साथ रहते हैं. अगर जावेद अख्तर यहां आते हैं और किसी भी धर्म के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी करते हैं, तो इससे राज्य की शांति भंग होगी.

उर्दू अकादमी ने किया था आयोजन

आरिफ ने आगे कहा कि वे पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित किसी अन्य कार्यक्रम के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि केवल उसी कार्यक्रम के खिलाफ हैं जिसमें जावेद अख्तर को आमंत्रित किया गया था. ‘हिंदी सिनेमा में उर्दू’ शीर्षक वाला कार्यक्रम 31 अगस्त से 3 सितंबर के बीच निर्धारित किया गया था. हालांकि, उर्दू अकादमी की सदस्य सचिव नुज़हत ज़ैनब ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण ये चार दिवसीय कार्यक्रम स्थगित किया जा रहा है.

एपीडीआर ने लगाया राजनीति करने का आरोप

हालांकि, मानवाधिकार समूह एपीडीआर ने कहा कि इस आयोजन को स्थगित करने का निर्णय आगामी 2026 के राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीति से प्रेरित था. सूर ने कहा कि असली वजह राजनीतिक अशांति का डर था. एपीडीआर के एक आधिकारिक बयान में कहा कि हम सरकार से मांग करते हैं कि वह राज्य के लोगों को बताए कि उसने ऐसा क्यों किया. राज्य सरकार को अपना फैसला बदलना चाहिए और जावेद अख्तर को सम्मान के साथ कोलकाता लाकर कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष नदीमुल हक ने कार्यक्रम रद्द होने के संबंध में किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया. बता दें कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अकादमी की अध्यक्ष हैं.

सबको खुलकर बोलने का है अधिकार

वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने एक्स पर निंदा करते हुए लिखा कि यह न तो हिंदू राष्ट्र है और न ही इस्लामी देश और यहां बहुत से नास्तिक हैं, जिन्हें जीने और खुलकर बोलने का अधिकार है. वरिष्ठ कवि-लेखक गौहर रज़ा ने भी यही भावना व्यक्त करते हुए कहा कि कार्यक्रम रद्द होना बेहद परेशान करने वाला और अस्वीकार्य है. यह यह भी दर्शाता है कि कट्टरपंथी, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, तर्क की आवाज़ों को दबाने के लिए समान रूप से प्रतिबद्ध हैं.

तस्लीमा को मजबूरन छोड़ना पड़ा था बंगाल

लेखिका तस्लीमा नसरीन ने अतीत की उस वाम मोर्चा सरकार को याद किया जिसने उन्हें पश्चिम बंगाल छोड़ने के लिए मजबूर किया था. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की सीपीआईएम सरकार ने मुझे राज्य छोड़ने पर मजबूर किया. इससे किसकी ताकत बढ़ी? इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों की ताकत.

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अब वे जावेद अख्तर के खिलाफ भड़के हुए हैं, जिन्हें उर्दू अकादमी ने आमंत्रित किया है. वे कह रहे हैं, ‘जावेद अख्तर ने इस्लाम की आलोचना की है, हम उन्हें पश्चिम बंगाल में घुसने नहीं देंगे. अगर वह घुसे, तो हम उन्हें वैसे ही भगा देंगे जैसे हमने तस्लीमा को भगाया था. उर्दू अकादमी इस्लामी कट्टरपंथियों के सामने बेबस है. यहां तक कि राज्य सरकार भी शायद बेबस है.

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