आसनसोल शहर के एक निजी अस्पताल “लाइफ लाइन” में शनिवार को जमकर हंगामा हुआ। वजह—इलाज में कथित लापरवाही और मरीज के साथ अमानवीय व्यवहार। परिजनों का आरोप है कि स्थानीय निवासी रविदास मंडल को मामूली फोड़े की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन इलाज के नाम पर केवल पैसे लिए गए और सही उपचार नहीं दिया गया।
शनिवार सुबह स्थिति तब और गंभीर हो गई, जब रविदास मंडल को अस्पताल प्रशासन ने इलाज़ करने की बजाय एंबुलेंस में लिटा कर बाहर छोड़ दिया। चश्मदीदों के अनुसार, मरीज करीब एक घंटे तक एंबुलेंस में तड़पता रहा, जबकि उसकी पत्नी अस्पताल के अंदर मदद के लिए भटकती रही।
परिजनों का आरोप है कि न केवल उन्हें लगातार टाला गया, बल्कि महिला के साथ धक्का-मुक्की और बदसलूकी भी की गई। इस अमानवीय व्यवहार से आक्रोशित परिजन और स्थानीय लोग अस्पताल परिसर में जमा होकर नारेबाज़ी करने लगे।
इस दौरान अन्य मरीजों के परिजन भी आगे आए और उन्होंने अस्पताल पर अत्यधिक पैसे वसूलने, स्वास्थ्य साथी कार्ड न मानने और सुविधाओं की भारी कमी का आरोप लगाया। उनका कहना है कि गरीब परिवारों के लिए यह स्थिति असहनीय है।
मौके पर स्थिति बिगड़ती देख पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। पुलिस ने लोगों को शांत कराया और पूरे मामले की जांच शुरू की है। हालांकि, कई बार संपर्क करने के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने इस मामले पर कोई बयान देने से साफ इनकार कर दिया।
अब सवाल उठ रहा है कि—
👉 जब एंबुलेंस में मरीज तड़प रहा था, तब अस्पताल का स्टाफ चुप क्यों रहा?
👉 स्वास्थ्य साथी कार्ड के बावजूद गरीब मरीजों से मनमानी वसूली कब तक चलेगी?
👉 आखिर अस्पताल प्रशासन जवाबदेही से क्यों भाग रहा है?
यह घटना आसनसोल ही नहीं, पूरे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।