‘ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः’ भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होने के कारण इसे कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं. इसे कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंती, जन्माष्टमी और श्री जयंती जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था. भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में अष्टमी तिथि का बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं.
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के बालस्वरूप की उपासना की जाती है और श्रीकृष्ण के बालस्वरूप को लड्डू गोपाल कहा जाता है. इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार 16 अगस्त यानी कल पूरे देश में मनाया जाएगा. इस दिन वृंदावन में अद्भुत रौनक देखने को मिलती है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचकर इस उत्सव को देखते हैं. श्रीकृष्ण केवल भगवान ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवन दर्शन का प्रतीक हैं. उनकी हर लीला में जीवन में बड़ी सीख हो सकती है. जन्माष्टमी पर भगवना का विशेष श्रृंगार भी किया जाता है और विविध प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग भी अर्पित किया जाता है. आइए आज आपको इसी के बारे में विस्तार से बताते हैं.
कृष्ण जन्माष्टमी 2025 तिथि : जन्माष्टमी की अष्टमी तिथि 15 अगस्त यानी आज रात 11 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 16 अगस्त यानी कल रात 9 बजकर 34 मिनट पर होगा. उदयातिथि के मुताबिक, इस बार 16 अगस्त यानी कल ही कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा.
वैसे तो, श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था लेकिन इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है. इस साल रोहिणी नक्षत्र 17 अगस्त की सुबह 4 बजकर 38 मिनट से लेकर 18 अगस्त की सुबह 3 बजकर 17 मिनट तक रहेगा.
कृष्ण जन्माष्टमी पूजन मुहूर्त : कृष्ण जन्माष्टमी का पूजन मुहूर्त 16 अगस्त की अर्धरात्रि 12 बजकर 4 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा, जिसके लिए कुल 43 मिनट का समय मिलेगा. वहीं, जन्माष्टमी का पारण 17 अगस्त की सुबह 5 बजकर 51 मिनट के बाद ही किया जाएगा.
कृष्ण जन्माष्टमी पूजन विधि : जन्माष्टमी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप का श्रृंगार करें और विधिवत उनकी पूजा-अर्चना करें. उन्हें पालने में झुलाएं और दूध, गंगाजल से अभिषेक करें. नए वस्त्र, मुकुट, बांसुरी और वैजयंती माला से उनका श्रृंगार करें. भोग में तुलसीदल, फल, माखन, मेवा, मिश्री, धनिये की पंजीरी, पूरी, हलवा, सब्जी, खीर, लड्डू और अन्य प्रसाद अर्पित करें. अंत में आरती उतारें और सभी को प्रसाद वितरित करें.
कृष्ण जन्माष्टमी पूजन सामग्री : झूला या पालना, भगवान कृष्ण की मूर्ति या प्रतिमा, बांसुरी, आभूषण और मुकुट, तुलसी दल, चंदन और अक्षत, माखन और केसर, इलायची और अन्य पूजा सामग्री, कलश और गंगाजल, हल्दी, पान, सुपारी, सिंहासन और वस्त्र (सफेद और लाल), कुमकुम, नारियल, मौली, इत्र, सिक्के, धूप, दीप, अगरबत्ती, फल, कपूर, मोरपंख
कैसे करें श्रीकृष्ण का श्रृंगार : श्रीकृष्ण का श्रृंगार प्रेम, श्रद्धा और पूरे भक्ति भाव से करना चाहिए. सबसे पहले भगवान को स्नान करवाकर स्वच्छ करें, फिर एक साफ कपड़े पर बैठाकर श्रृंगार शुरू करें.
श्रृंगार में ताजगी और सुंदरता लाने के लिए फूलों का खूब प्रयोग करें. गेंदा, गुलाब, मोगरा या चमेली के फूल भगवान को अति प्रिय हैं. भगवान को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं, क्योंकि पीला रंग उनका सबसे पसंदीदा रंग माना जाता है.
इसके बाद उनके माथे, गले और हाथों में चंदन का लेप लगाएं. यह न केवल भगवान के श्रृंगार को सुंदर बनाता है, बल्कि पूरे वातावरण में मधुरता और पवित्रता भी घोल देती है.
इस बात का खास ध्यान रखें कि श्रृंगार में काले रंग का प्रयोग न करें, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है. यदि संभव हो तो भगवान को वैजयंती के फूल अर्पित करें. वैजयंती के फूल की माला भगवान को अत्यंत प्रिय होती है.
अंत में उनके सिर पर मोरपंख वाला मुकुट या पगड़ी सजाएं. गले में फूलों की माला पहनाएं और हाथ में बांसुरी रखें. इस तरह आपका श्रृंगार न केवल सुंदर दिखेगा, बल्कि उसमें भक्ति और प्रेम की झलक भी दिखाई देगी. श्रृंगार के बाद लड्डू गोपाल को झूले पर विराजमान करें और झूले को फूलों से सजाएं. साथ ही भजन-कीर्तन के साथ भगवान को धीरे-धीरे झुलाएं.
बीज मंत्र : ॐ क्लीं कृष्णाय नमः
