500 करोड़ की वसूली पर उठे गंभीर सवाल, क्या अवैध निर्माण हुआ वैध?
कोलकाता/आसनसोल। रिपोर्ट : संजीब कुमार यादव
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल की नगरपालिकाओं की कार्यप्रणाली पर करारा तमाचा मारा है। जमुरिया के एक इस्पात कारखाने से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान सिंगल बेंच के जज गौरांग कांत ने आसनसोल नगर निगम के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया है। साथ ही, कोर्ट ने सवाल किया – “क्या भारी भरकम जुर्माना वसूलकर अवैध निर्माण को वैध ठहराया जा सकता है?”
⚖️ मामला क्या है?
हाईकोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया कि जमुरिया और रानीगंज क्षेत्र में 11 इस्पात और औद्योगिक कारखानों ने बिना अनुमति के अवैध निर्माण किया है। इस पर दो साल पहले आसनसोल नगर निगम ने नोटिस भेजकर चेताया था कि निर्माण तोड़ा जाएगा या भारी जुर्माना भरना होगा। लेकिन तब से लेकर अब तक ना कोई निर्माण तोड़ा गया और ना ही कोई स्थायी अनुमति दी गई — सिर्फ जुर्माना वसूला जा रहा है। अनुमान है कि अब तक करीब 500 करोड़ रुपये की वसूली की जा चुकी है।
💰 जुर्माना या सौदेबाज़ी?
कारखाना मालिकों ने आरोप लगाया कि नगर निगम ने मौखिक तौर पर आश्वासन दिया था कि जुर्माना देने के बाद निर्माण को नहीं छेड़ा जाएगा। लेकिन निगम ने इस पर कोई लिखित गारंटी नहीं दी। ऐसे में यह सवाल उठता है — क्या यह जुर्माना था या एक सौदेबाज़ी?
🧱 बुलडोजर दिखाया, कार्रवाई नहीं
निगम के अधिकारी बकायदा बुलडोज़र लेकर कारखानों तक पहुंचे थे, लेकिन कार्रवाई की जगह सिर्फ नोटिस पकड़ाकर जुर्माना वसूला गया। कोर्ट ने इसे पूरी तरह गैरकानूनी और निगम की “मौन सहमति से भ्रष्टाचार” करार दिया।
🗣️ विपक्ष का हमला
इस मुद्दे पर भाजपा नेता जितेंद्र तिवारी ने मोर्चा खोलते हुए कहा —
“नगर निगम की यह कार्रवाई भ्रष्टाचार से भरी है। जुर्माना वसूली के नाम पर श्रमिकों की आजीविका से खिलवाड़ किया जा रहा है। ना तो पारदर्शिता है, ना ही संवेदनशीलता।”
🧾 मेयर ने झाड़ा पल्ला
जब मेयर विधान उपाध्याय से मीडिया ने पूछा कि क्या उन्हें हाईकोर्ट का कोई आदेश या FIR नोटिस मिला है, तो उन्होंने साफ कहा कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है और नगर निगम हर कार्य कानून के तहत कर रहा है।
📢 इस पूरे घटनाक्रम ने तीन बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं:
- अगर निर्माण अवैध था, तो तोड़ा क्यों नहीं गया?
- अगर निर्माण वैध था, तो जुर्माना क्यों वसूला गया?
- वसूले गए 500 करोड़ रुपये का हिसाब कहां है?
🔍 निष्कर्ष:
इस मामले ने आसनसोल नगर निगम की पारदर्शिता, नियमन और प्रशासनिक ईमानदारी पर सीधा सवाल खड़ा कर दिया है। साथ ही पूरे राज्य में नगरपालिकाओं की कार्यशैली को लेकर नई बहस छेड़ दी है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गर्माएगा, क्योंकि अब यह सिर्फ जुर्माना नहीं — भ्रष्टाचार की एक बड़ी फाइल बन चुका है।