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कारगिल विशेष (जीत के 26 साल) : अमेरिका ने छोड़ा साथ तो इजराइल ने बढ़ाया था हाथ

(प्रेम शंकर चौबे) भारत ने आज कारगिल विजय के 26 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया. यह दिन भारत के इतिहास में गौरव की किरण की तरह चमकता है. यह 1999 की उस शानदार विजय का प्रतीक है. जब हमारे सैनिकों ने बर्फ से ढकी चोटियों और दुश्मन की लगातार गोलीबारी का सामना करते हुए, अद्वितीय साहस और अटूट संकल्प के साथ कारगिल की चोटियों पर पुनः विजय प्राप्त की थी. 26 जुलाई को, लद्दाख की दुर्गम पहाड़ियों पर तिरंगा एक बार फिर शान से लहराया, जो बलिदान, वीरता और अटूट राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है.

यह वर्षगांठ सिर्फ़ कैलेंडर पर एक तारीख़ नहीं है, यह उस साहस और एकता की एक प्रेरक याद दिलाती है जो भारत की पहचान है. यह उन वीरों को सलाम है जिन्होंने बेहद कठोर हवा और बर्फीली हवाओं में लड़ते हुए हर चोटी को अपनी बहादुरी का प्रमाण बना दिया. कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाने वाला यह संघर्ष मई 1999 में शुरू हुआ जब घुसपैठियों ने चुपके से नियंत्रण रेखा पार कर ऊंची चोटियों पर स्थित भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया. उनका नापाक मकसद श्रीनगर को लेह से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग 1A को काटना था. लेकिन उन्होंने राष्ट्र की इच्छाशक्ति को कम करके आंका. जनवरी से अप्रैल 1999 के बीच हुई इस घुसपैठ में पाक आर्मी एलओसी के 4 से 10 किमी तक अंदर आकर सर्दियों में खाली पड़ी 130 भारतीय पोस्ट पर कब्जा कर लिया था. 3 मई 1999 को पहली बार भारत को इसकी भनक लगी तो घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन शुरू किया. 6 जून 1999 को भारत द्वारा सबूत दिए जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाक घुसपैठ को स्वीकारा, उसके पहले तो अमेरिका सीधे तौर पर इसे पाक हमला नहीं मान रहा था। 12 जून की रात भारतीय सेना ने कारगिल के तोलोलिंग पहाड़ी जैसे अहम ठिकानों पर फिर से अपना परचम लहराते हुए पोस्ट पर वापस कब्जा कर लिया। हालांकि इस जंग के दौरान भारतीय सेना को जान-माल का काफी नुकसान उठाना पड़ा था। भारतीय सेना दुश्मन और प्रकृति दोनों से जंग लड़ रही थी। ऐसे में अमेरिका ने जहां भारत का साथ देने से साफ इनकार कर दिया था तो वहीं इजराइल ने मदद का हाथ बढ़ाया था। मई के आखिर तक तोलोलिंग और टाइगर हिल जैसी ऊंची पहाड़ियों पर बैठे पाक सैनिक मशीनगन, मोर्टार और एंटी-एयरक्राफ्ट गन से हमले कर रहे थे। भारतीय सैनिकों को खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ रही थी। ऑक्सीजन की कमी और ठंड ने हालात को और भी मुश्किल बना दिया था। बोफोर्स तोप और अन्य हथियार कम पड़ रहे थे। कारगिल का इलाका ऊंचा और उबड़-खाबड़ होने के कारण सामान्य नक्शों की मदद से सटीक निशाना साधना कठिन हो रहा था। भारतीय वायुसेना ने मिग-21, मिग-27 और मिराज-2000 विमानों का इस्तेमाल तो शुरू कर दिया था, लेकिन दुश्मनों के बंकर को नष्ट करने के लिए लेजर-गाइडेड बम और सटीक लोकेशन बताने वाला नेविगेशन सिस्टम भी चाहिए था। उस समय अमेरिका के पास सैटेलाइट आधारित जीपीएस तकनीक थी। अमेरिकी सेना इसका इस्तेमाल करती थी। भारत उस समय अमेरिका से बम और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी खरीदना चाह रहा था। तब के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अमेरिकी विदेश उपमंत्री स्ट्रोब टाल्बोट और कई अमेरिकी डिफेंस ऑफिसर्स से भी बात की, लेकिन अमेरिका ने भारत की मांगों को सख्ती से ठुकरा दिया था। अमेरिका ने कहा था कि- वह युद्ध तो रोकना चाहता है, लेकिन ग्लेन संशोधन के नियम के तहत वह भारत को कोई हथियार, बम या सैन्य तकनीक नहीं दे सकता। यहां बता दें कि ग्लेन संशोधन के तहत अमेरिका ने 13 मई 1998 को भारत पर पाबंदियां लगाई थी, क्योंकि 11 मई 1998 को भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण (न्यूक्लियर टेस्ट) किया था। इधर, कारगिल जंग शुरू होने के दो साल पहले भारत ने इजराइल से सटीक निशाना लगाने वाले टार्गेटिंग पॉड्स की डील की थी। 1999 में कारगिल जंग शुरू होते ही इजराइल ने पॉड्स की डिलीवरी फौरन शुरू कर दी, हालांकि अमेरिका ने इन पॉड्स पर लगने वाले पैभवे-2 एलजीबी बम देने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद इजराइल ने भारत को मिराज-2000 विमानों के लिए लाइटनिंग लेजर पॉड और लेजर गाइडेड बम दिए। इसके अलावे इजराइल ने भारत को सर्चर, हेरोन ड्रोन, सैन्य सैटेलाइट्स, मोर्टार और गोला-बारूद की खेप भेजी, जिसने भारतीय सेना का काम आसान बनाया। इजराइल के ड्रोन्स ने पाकिस्तानी बंकरों की रियल टाइम फोटोज दीं। भारतीय सेना जीत की ओर बढ़ रही थी। इस बीच 2 जुलाई 1999 को रात 10 बजे जब अमेरिकी राष्ट्रपति नेभारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हॉटलाइन पर कॉल किया तो वाजपेयी ने साफ कह दिया कि जब तक पाकिस्तानी सेना भारत के इलाकों से वापस नहीं जाएगी तब तक वह कोई बात नहीं करेंगे। 4 जुलाई 1999 को वाशिंगटन में नवाज शरीफ और बिल क्लिंटन के बीच हुई तनावपूर्ण बैठक में क्लिंटन ने सख्त लहजे में शरीफ को युद्ध रोकने की भारत की शर्तें बताईं। इधर, पाक सेना जंग में बुरी तरह हार रही थी। तोलोलिंग और टाइगर हिल जैसे सभी जरूरी पॉइंट्स भारत के कब्जे में आ चुके थे। ऐसे में पाक ने हार मानते हुए 11 जुलाई से वापस भागना शुरू कर दिया। 26 जुलाई को भारत ने अपनी जीत का ऐलान किया।

दुर्गम इलाकों में इंच-इंच लड़ती रही भारतीय सेना

भारत ने ऑपरेशन विजय के साथ जवाब दिया, एक ऐसा अभियान जिसमें सावधानीपूर्वक योजना, दृढ़ निश्चय और सैनिकों के अदम्य साहस का मिश्रण था. दो महीने से भी ज़्यादा समय तक, हमारी सेनाएं सबसे दुर्गम इलाकों में इंच-इंच लड़ती रहीं, जब तक कि हर घुसपैठिए को खदेड़ नहीं दिया गया और हर चौकी भारतीय नियंत्रण में वापस नहीं आ गई. कारगिल विजय दिवस केवल स्मरण का अवसर नहीं है. यह मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वालों की विरासत का सम्मान करने का संकल्प है. यह हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले साहस और बलिदान की भावना को जीवित रखने का एक सतत आह्वान है. आज, जब हम 1999 के वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.

बर्फ की चोटियों पर कठिन युद्ध

1999 की गर्मियों में, जब पूरा भारत भीषण गर्मी से जूझ रहा था, बर्फीले हिमालय की ऊंचाइयों पर एक अलग ही युद्ध छिड़ा हुआ था. यह कोई विशाल रेगिस्तान या लहरदार मैदानों में लड़ा जाने वाला युद्ध नहीं था, बल्कि उन नुकीली चोटियों पर लड़ा जा रहा था जहां ऑक्सीजन की कमी थी, तापमान असहनीय था, और जमीन का एक-एक इंच हिस्सा खून की कीमत पर हासिल किया जा रहा था. यह कारगिल युद्ध था, एक सैन्य अभियान से कहीं ज़्यादा, यह विश्वास, दृढ़ता और बलिदान की परीक्षा थी.

फौजियों ने अपने घर वालों को भेजा पत्र

इन जवानों ने न सिर्फ़ गोलियों का सामना किया, बल्कि प्रकृति के प्रकोप, हड्डियां कंपा देने वाली हवाओं, शून्य से नीचे के तापमान और हर सांस पर सहनशक्ति की परीक्षा लेने वाले ऑक्सीजन के स्तर को भी झेला. फिर भी, उनके घर भेजे गए पत्रों में डर की नहीं, बल्कि कर्तव्य की झलक मिलती थी. कुछ ने घर के बने खाने की याद आने की बात लिखी, कुछ ने जल्द लौटने का वादा किया, और कुछ ने अपने बच्चों को मन लगाकर पढ़ाई करने की याद दिलाई. कई कभी वापस नहीं लौटे. उनकी कमी उन घरों में महसूस की गई जहा. मांएं दीये जलाती थीं, जहां पत्नियां तस्वीरें पकड़े रहती थीं, और जहां बच्चे खेलते समय अपने पिता की वर्दी पहने रहते थे, इस बात से अनजान कि यह कितना गहरा नुकसान है.

युद्ध में 545 सैनिक शहीद

जुलाई के अंत तक, हफ्तों तक चली अथक लड़ाई के बाद, भारत ने नियंत्रण रेखा पार किए बिना ही सभी कब्जे वाली चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया था. गंभीर उकसावे के बावजूद, इस संयम ने अंतर्राष्ट्रीय क़ानून की रक्षा की और दुनिया भर में भारत का सम्मान बढ़ाया. इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ी, 545 सैनिक शहीद हुए, हज़ार से ज़्यादा घायल हुए, लेकिन देश का संकल्प और मजबूत होता गया. द्रास स्थित कारगिल युद्ध स्मारक की दीवारों पर उकेरा गया हर नाम उस कीमत और उस गौरव की याद दिलाता है.

सैनिकों को मिला सर्वोच्च वीरता पुरस्कार

युद्ध के दौरान, 4 सैनिकों को भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र (PVC) से सम्मानित किया गया. 9 सैनिकों को महावीर चक्र (MVC) और 55 को वीर चक्र (VC) से सम्मानित किया गया. 1 सैनिक को सर्वोत्तम युद्ध सेवा पदक (SYSM) से सम्मानित किया गया , जबकि 6 को उत्तम युद्ध सेवा पदक (UYSM) और 8 को युद्ध सेवा पदक (YSM) से सम्मानित किया गया. 83 सैनिकों को सेना पदक (SM) और 24 को वायु सेना पदक (VSM) प्रदान किया गया. ये सम्मान संघर्ष के दौरान प्रदर्शित वीरता और असाधारण सेवा के स्तर को दर्शाते हैं.

  1. ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव – परमवीर चक्र, 18 ग्रेनेडियर
  2. राइफलमैन संजय कुमार – परमवीर चक्र, 13 जेएके राइफल्स
  3. कैप्टन विक्रम बत्रा – परमवीर चक्र (मरणोपरांत), 13 जेएके राइफल्स
  4. कैप्टन मनोज कुमार पांडे – परमवीर चक्र (मरणोपरांत), 11 गोरखा राइफल्स
  5. कैप्टन अनुज नैय्यर – महावीर चक्र (मरणोपरांत), 17 जाट
  6. मेजर राजेश अधिकारी – महावीर चक्र (मरणोपरांत), 18 ग्रेनेडियर्स
  7. मेजर विवेक गुप्ता – महावीर चक्र (मरणोपरांत), 2 राजपूताना राइफल्स
  8. कैप्टन विजयंत थापर – वीर चक्र (मरणोपरांत), 2 राजपूताना राइफल्स
ghanty

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