मुख्य बातें:
- 2011 से 2025 के बीच 6,688 कंपनियों ने बंगाल छोड़ा
- 1,308 कंपनियां महाराष्ट्र, 1,297 दिल्ली और 879 यूपी गईं
- भाजपा नेता अमित मालवीय ने इसे बताया ‘औद्योगिक पलायन’
- 110 लिस्टेड कंपनियों ने भी बंगाल छोड़ा
- बंगाल सरकार की नीति और शासन पर उठे गंभीर सवाल
पश्चिम बंगाल से 2011 से 2025 तक कुल 6,688 कंपनियों ने अपना रजिस्टर्ड ऑफिस अन्य राज्यों में स्थानांतरित कर लिया, यह जानकारी केंद्र सरकार ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से दी। कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अनुसार, ये कंपनियां महाराष्ट्र (1,308), दिल्ली (1,297), उत्तर प्रदेश (879), छत्तीसगढ़ (511) और गुजरात (423) जैसे राज्यों में चली गईं।
इस बड़े आर्थिक ट्रेंड पर भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा,
“6,688 कंपनियों ने बंगाल छोड़ दिया! ये सिर्फ आंकड़ा नहीं, ये रोजगार का नुकसान है, अर्थव्यवस्था का पतन है और निवेशकों के विश्वास का संकट है। क्या कोई जवाबदेह है?”
उन्होंने इसे “मास एक्ज़ोडस” (mass exodus) यानी “व्यापक औद्योगिक पलायन” करार दिया और कहा कि बंगाल की औद्योगिक छवि पूरी तरह धूमिल हो चुकी है।

📉 कब कितनी कंपनियां गईं?
- 2015-16: 869 कंपनियां गईं
- 2016-17: 918 कंपनियां गईं
- 2017-18: सबसे अधिक 1,027 कंपनियों ने बंगाल को अलविदा कहा
मालवीय ने दावा किया कि इनमें से 110 कंपनियां शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध थीं, यानी इनकी आर्थिक गतिविधि का दायरा और प्रभाव काफी व्यापक था।
उन्होंने यह भी बताया कि केवल महाराष्ट्र या दिल्ली ही नहीं, राजस्थान, असम, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों ने भी सैकड़ों कंपनियों को आकर्षित किया।
📢 विपक्ष का आरोप:
भाजपा नेताओं का कहना है कि बंगाल में:
- नीतिगत अस्थिरता है
- उद्योगों के लिए सहायक माहौल नहीं है
- भ्रष्टाचार और लालफीताशाही हावी है
- और निवेशकों का भरोसा लगातार गिरता जा रहा है
🔍 निष्कर्ष:
एक समय पर भारत के औद्योगिक नक्शे पर बंगाल अग्रणी था। अब जब हजारों कंपनियां बंगाल छोड़ रही हैं, तो यह राज्य की औद्योगिक नीतियों और प्रशासनिक दक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
क्या ममता बनर्जी सरकार को अब आत्ममंथन नहीं करना चाहिए?