नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी को मनी लॉन्ड्रिंग और कथित नौकरी घोटाले से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के लिए समय सीमा तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि उनके खिलाफ चार्ज फ्रेम होते हैं और गवाहों के बयान दर्ज किए जाते हैं तो उन्हें 1 फरवरी 2024 से पहले रिहा किया जाना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की बेंच ने यह आदेश दिया और मामले की सुनवाई को तेज करने का निर्देश दिया।
पार्थ चटर्जी की राजनीतिक गिरावट
कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी माने जाने वाले पार्थ चटर्जी को जुलाई 2022 में शिक्षक भर्ती घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद उन्हें मंत्री पद और तृणमूल कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया।
चार्जशीट दाखिल, लेकिन चार्ज फ्रेमिंग लंबित
इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चार्जशीट दाखिल की है, लेकिन अब तक चार्ज फ्रेम नहीं हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “शीतकालीन अवकाश शुरू होने से पहले या 31 दिसंबर 2024 तक ट्रायल कोर्ट चार्ज फ्रेमिंग का फैसला करे।”
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पार्थ चटर्जी अभी तक बिचौलिया अभियुक्त (अंडरट्रायल) हैं और उन्हें अनिश्चितकाल तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि हिरासत दंड के रूप में नहीं होनी चाहिए।
जमानत की लड़ाई
पार्थ चटर्जी ने पहले कोलकाता हाई कोर्ट में जमानत की अपील की थी, जो अप्रैल में खारिज हो गई थी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
उनकी ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि जिन आरोपों के लिए उन्हें हिरासत में रखा गया है, उनकी अधिकतम सजा सात साल है, जबकि वह पहले ही दो साल से ज्यादा जेल में बिता चुके हैं।
अर्पिता मुखर्जी को जमानत का हवाला
रोहतगी ने यह भी तर्क दिया कि पार्थ चटर्जी की करीबी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी, जिनके घर से बड़ी मात्रा में नकदी जब्त की गई थी, उन्हें भी जमानत मिल चुकी है।
ईडी को सुप्रीम कोर्ट का सवाल
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में कम सजा दर पर सवाल उठाया था। कोर्ट ने पूछा, “आखिर कितने समय तक पूर्व मंत्री को जेल में रखा जा सकता है?”